एक दिन एक तालाब के किनारे मंथरक (कछुआ), लघुपतनक (कौआ) और हिरण्यक (चूहा) बैठे आपस में बातें कर रहे थे। तभी शिकारी से बचता बचाता चित्रांग (हिरण) वहाँ आया और उनका मित्र बनकर उनके साथ रहने लगा।
एक दिन हिरण अपना खाना ढूंढकर शाम को जब वापस नहीं आया तो सभी मित्र चिंतित हो गए। सबकी सलाह से कौए ने आसमान में उड़कर उसे ढूँढना शुरू किया। हिरण ने कौए को देखा तो चिल्लाकर बोला, “शिकारी के आने से पहले कृपया जाल से मुझे निकालो।”
कौआ दोस्तों के पास पहुंचा। सारी बात उन्हें बताई और चूहे को हिरण के पास ले गया। अपने पैने दाँतों से चूहे ने जाल काट दिया। इसी बीच रेंगता-रेंगता कछुआ भी वहां पहुंच गया था।
तभी शिकारी आया और जाल कटा तथा हिरण को गायब देखा। शिकारी को देखते ही सभी जान बचाकर भागे। कौआ उड़ गया, चूहा पत्थरों के पीछे छुप गया और हिरण ने जंगलों की ओर छलांग लगाई पर कछुआ पकड़ा गया। उसे थैले में बंद कर शिकारी चल पड़ा।
अब कछुए को बचाने की सलाह की गई। कौए ने उपाय बताया, हिरण भाई, तुम तालाब के पास मृतप्राय लेट जाओ। मैं तुम्हारी आँख निकालने का नाटक करूँगा। शिकारी तुम्हें मृत समझकर, थैला छोड़कर पकड़ने आएगा। तुम चौकड़ी भरकर भाग लेना। तभी चूहा थैला कुतरकर कछुए को बचा लेगा।
कौए के बताए उपाए के अनुसार हिरण मृतप्राय लेट गया। शिकारी ने उसे मृत समझकर थैला रखा और हिरण को लेने दौड़ा। शिकारी को पास आता देखकर हिरण उठा औ बिजली की गति से जंगलों में भाग गया। निराश शिकारी वापस अपने थैलों के पास आया। थैला कुतरा हुआ था और कछुआ गायब… उसके दुःख की सीमा न रही।
इधर, चारों मित्र हिरण्यक, मन्थरक, लघुपतनक और चित्रांग फिर से साथ होकर बहुत प्रसन्न थे।
शिक्षा :- संघ में बहुत शक्ति होती है।