सात दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान की शुरुआत 16 जनवरी को प्रायश्चित पूजन व कर्म कुटी पूजन से हुई थी। अनुष्ठान का समापन 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ हुआ। शुभ मुहूर्त में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा नदियप प्रजामे गोपाया अमृतत्वया जीवते, जातांच निश्यामानांच, अमृते सत्ये प्रतिष्ठिताम्… मंत्र के जप से की गई। इस मंत्र का अर्थ होता है प्रभु यहां पर प्रतिष्ठित होकर पूरी सृष्टि का संचालन करना है। धर्म की रक्षा के लिए आप प्रतिष्ठित हो जाइए। अनुष्ठान में शामिल आचार्य मृत्युंजय ने बताया कि सबसे प्राचीन और पहले वेद ऋग्वेद के सबसे बड़े देवता इंद्र हैं। वेदों के एक चौथाई हिस्से में इंद्र देव हैं।
इंद्रदेव के लिए 2500 मंत्र हैं। दूसरे स्थान पर अग्नि हैं, उनके दो हजार मंत्र हैं। अनुष्ठान के राम जन्मभूमि परिसर में दो यज्ञमंडप व नौ हवन कुंड बनाए गए थे। अनुष्ठान के क्रम में पूरे सात दिन तक नौ हवन कुंडों में कुल 60 घंटे तक करीब 5़ 50 लाख मंत्रों का वाचन कर आहुतियां अर्पित की गईं।
इसमें चारों वेद, 13 उपनिषद, 18 पुराणों, वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास की रामचरितमानस, श्रीमद्भागवत और ब्राह्मण ग्रंथों के मंत्र, श्लोक, छंद, दोहे, सोरठा और चौपाईयां पढ़ी गईं। इसके अलावा गणेश भगवान का जप, भैरव जप, अंबिका, नवग्रह, वास्तु होम और इसके बाद भगवान राम का प्रिय मंत्र पुरुष सूक्त का भी वाचन किया गया। इसी पुरु सूक्त के मंत्र से नौ अगिनकुंडों में 21 जनवरी की शाम को हवन हुआ।
प्राण प्रतिष्ठा के दौरान पढ़ा गया मंत्र
नदियप प्रजामे गोपाया अमृतत्वया जीवते, जातांच निश्यामानांच, अमृते सत्ये प्रतिष्ठिताम्
अर्थात- प्रभु यहां पर प्रतिष्ठित होकर पूरी सृष्टि का संचालन करना है। धर्म की रक्षा के लिए आप प्रतिष्ठित हो जाइए।
धर्मग्रंथों में मंत्रों की संख्या
- पुराण- चार लाख सात सौ मंत्र
- श्रीमद्भागवत- एक लाख मंत्र
- ऋग्वेद- 10,552
- यजुर्वेद- 3988
- सामवेद- 1875
- अथर्ववेद- 5987
- वाल्मीकि रामायण-24,000
- रामचरित मानस-6002 श्लोक,दोहा, चौपाई, सोरठा, छंद आदि
- उपनिषद-1441