आज हम आपको गणेश जी के एकदंत नाम के पीछे की कथा के बारे में बताएंगे कैसे उनका नाम एकदंत पड़ा
भगवान गणेश देवों के देव महादेव और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र हैं गणेश का जन्म नही हुआ था बल्कि माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की थी। और जब उनकी रचना की थी तो उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार में गणेश की रचना के बाद माता ने उनको घर की पहरेदारी करने का आदेश दिया था।साथ ही माता ने उनसे कहा था कि, जब तक में स्नान कर रही हूँ तब तक के लिये गणेश किसी को भी घर में प्रवेश नही करने देना। तभी द्वार पर भगवान शंकर आए और बोले पुत्र यह मेरा घर है और मुझे घर में प्रवेश करने दो। लेकिन गणेश ने माता की आज्ञा का मान रखते हुए शिव जी को भी घर के अंदर नही जाने दिया। गणेश के रोकने पर भगवान शिव ने क्रोध में आकर गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता पार्वती व्याकुल हो उठीं तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ जिसके बाद भगवान शंकर ने गज के बच्चे का सिर गणेश के लिए मंगवाया उसके बाद उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सर लगा दिया जिससे वह जीवित हो गए साथ ही भगवान ने उन्हे प्रथम पूज्य का वरदान दिया इसीलिए किसी भी कार्य में सर्वप्रथम गणेश का पूजन किया जाता है.
विद्या, बुद्धि, विनय, विवेक में भगवान गणेश अग्रिम हैं महाभारत को उन्होंने लिपिबद्ध किया है दुनिया के सभी लेखक सृजक शिल्पी नवाचारी एकदंत से प्रेरणा पाते हैं महाभारत विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है। इसमें एक लाख से ज्यादा श्लोक हैं महर्षि वेद व्यास के मुताबिक यह केवल राजा-रानियों की कहानी नहीं बल्कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कथा है इस ग्रंथ को लिखने के पीछे भी रोचक कथा है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने स्वप्न में महर्षि व्यास को महाभारत लिखने की प्रेरणा दी थी महर्षि व्यास ने यह काम स्वीकार कर लिया लेकिन उन्हें कोई इसे लिखने वाला नही मिला महाभारत के प्रथम अध्याय में उल्लेख है कि, वेद व्यास ने गणेशजी को इसे लिखने का प्रस्ताव दिया तो वे तैयार हो गए उन्होंने लिखने के पहले शर्त रखी कि महर्षि कथा लिखवाते समय एक पल के लिए भी नहीं रुकेंगे
गणेश जी की इस शर्त को मानते हुए महर्षि ने भी एक शर्त रख दी कि गणेश भी एक-एक वाक्य को बिना समझे नहीं लिखेंगे इस तरह गणेशजी के समझने के दौरान महर्षि को सोचने का अवसर मिल गया इस बारे में एक और कथा है कि, महाभारत लिखने के दौरान जल्दबाजी के कारण ही श्री गणेश ने अपना एक दाँत तोड लिया था माना जाता है कि बिना रुके लिखने की शीघ्रता में यह दांत टूटा था तभी से वे एकदंत कहलाए. लेकिन इतनी शीघ्रता के बाद भी श्री गणेश ने एक-एक शब्द समझ कर लिखा
एकदंत गणेश के बारे में ये भी कथा प्रचलित है कि, एक बार शिवजी के परमभक्त परशुराम भोलेनाथ से मिलने आए उस समय कैलाशपति ध्यानमग्न थे जिस कारण गणेश ने परशुराम को मिलने से रोक दिया जिसपर परशुराम ने उन्हें कहा वो भगवान से मिले बिना नहीं जाएंगे. गणेश भी विनम्रता से उन्हें टालते रहे जब परशुरामजी का धैर्य टूट गया तो उन्होंने गजानन को युद्ध के लिए ललकारा ऐसे में गणाध्यक्ष गणेश को उनसे युद्ध करना पड़ा जिसके बाद गणेश और परशुराम के बीच भीषण युद्ध हुआ परशुराम के हर प्रहार को गणेश निष्फल करते गए
अंततः क्रोध के वशीभूत परशुराम ने गणेश पर शिव से प्राप्त परशु से ही वार किया गणेश ने अपने पिता शिव से परशुराम को मिले परशु शस्त्र का आदर रखा परशु के प्रहार से उनका एक दांत टूट गया पीड़ा से एकदंत कराहने लगे। पुत्र की पीड़ा सुन माता पार्वती आईं और गणेश को इस अवस्था में देख परशुराम पर क्रोधित होकर दुर्गा के स्वरूप में आ गईं। यह देख परशुराम समझ गए उनसे भयंकर भूल हुई है। परशुराम ने माता पार्वती से क्षमा याचना कर एकदंत की विनम्रता की सराहना की। परशुराम ने गणेश को अपना समस्त तेज, बल, कौशल और ज्ञान आशीष स्वरूप प्रदान किया। इस प्रकार गणेश की शिक्षा विष्णु के अवतार गुरु परशुराम के आशीष से सहज ही हो गई कालांतर में उन्होंने इसी टूटे दंत से महर्षि वेदव्यास से उच्चरित महाभारत कथा का लेखन किया देवताओं में प्रथम पूज्य गणेश को एकदंत रूप आदिशक्ति पार्वती, आदिश्वर भोलेनाथ और जगतपालक श्रीहरि विष्णु की सामूहिक कृपा से प्राप्त हुआ गणेश इसी रूप में समस्त लोकों में पूजनीय, वंदनीय हैं.