नई दिल्ली – ( नेशनल थोट्स ) केंद्र सरकार द्वारा मसूर, उड़द, अरहर (तूर), मक्की और कपास की फसलों पर अनुबंध की शर्त पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी का प्रस्ताव किसानों ने नामंजूर कर दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने सोमवार को शंभू बॉर्डर पर पत्रकार वार्ता में कहा कि केंद्र सरकार करार नहीं, एमएसपी की पूरी कानूनी गारंटी दे।
इससे कम हमें कुछ भी मंजूर नहीं है। वहीं, किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि सरकार के साथ वार्ता जारी रखेंगे। 21 फरवरी की सुबह 11 बजे दिल्ली कूच किया जाएगा।
किसानों की तीन प्रमुख मांगें हैं:
- सभी फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी
- कर्जमाफी
- बिजली अधिनियम वापस लेना
किसानों का कहना है कि पांच या सात साल के करार से प्रस्ताव से उन्हें कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि इस प्रस्ताव के साथ केंद्रीय मंत्रियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि खरीद की कोई तय सीमा नहीं होगी। एमएसपी की कानूनी गारंटी पर अब तक केंद्रीय मंत्रियों और किसान संगठनों के बीच चंडीगढ़ में चार बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन हल नहीं निकल पाया है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद तीन बार इस बैठक में शामिल हो चुके हैं।
किसान नेता रणजीत राजू ने बताया कि सरकार का एमएसपी से जुड़ा प्रस्ताव किसी काम का नहीं है। उनका कहना है कि उनके पास डाटा और रिकॉर्ड है। अगर किसान धान छोड़कर मक्का, बाजरा या कोई दूसरी फसल बोते हैं तो न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी दिया जाएगा। मगर धान और गेहूं पंजाब हरियाणा में है। हरियाणा में भी कुछ क्षेत्र में ही धान होता है। मगर जो दूसरे राज्य हैं वह क्या करेंगे।
जैसे राजस्थान में हम तो चना, सरसों, गेहूं, ग्वार, बाजरा, ज्वार, अरहर, उड़द और दूसरी फसल बोते हैं, उनका क्या होगा। अब कर्नाटक की तरफ किसान बीज की खेती करता है उसे कैसे इस फार्मूले से एमएसपी मिलेगा। सरकार को सभी किसानों की तरफ देखना होगा। यह फार्मूला तो किसानों के साथ मजाक जैसा है। अभी भी सरकार किसानों को उलझाने का काम कर रही है।
यह स्पष्ट है कि किसानों और सरकार के बीच एमएसपी को लेकर गतिरोध बना हुआ है। 21 फरवरी को किसानों का दिल्ली कूच इस गतिरोध को और गहरा कर सकता है। सरकार को किसानों की मांगों पर गंभीरता से विचार करना होगा और एक ठोस समाधान निकालना होगा।