रिया का बचपन धारवाड़ के एक छोटे से गाँव में बीता, जहाँ शिक्षा को बहुत महत्व नहीं दिया जाता था। हालाँकि, रिया की आँखों में हमेशा एक अलग चमक थी। वह डॉक्टर बनकर गाँव के लोगों की सेवा करना चाहती थी। लेकिन उसके माता-पिता, जो खुद अनपढ़ थे, रिया के सपने को समझ नहीं पाए। उनका मानना था कि लड़कियों को पढ़ाना-लिखाना व्यर्थ है।
रिया ने हार नहीं मानी। वह छुप-छुपकर पढ़ाई करती, रात के समय तेल का दीया जलाकर पुरानी किताबें पढ़ती। गाँव के स्कूल में, वह सबसे मेधावी छात्रा थी, लेकिन उसे शिक्षकों से भी बहुत कम समर्थन मिला। कई बार तो उन्होंने उसे ताना भी मारा कि लड़कियों का डॉक्टर बनना नामुमकिन है।
लेकिन रिया अडिग रही। उसने अपनी मेहनत जारी रखी और अंत में शहर के एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया। शहर में रहना और पढ़ाई करना उसके लिए आसान नहीं था। आर्थिक तंगी और सामाजिक असुरक्षा से जूझना पड़ा। लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई पूरी की।
आज रिया एक सफल डॉक्टर है, जो गाँव के लोगों की सेवा कर रही है। उसने न केवल अपने सपने को पूरा किया बल्कि दूसरों के लिए भी एक मिसाल कायम की। गाँव की लड़कियाँ अब रिया को अपना आदर्श मानती हैं और उनका सपना भी डॉक्टर बनना है।