एक समय सृष्टि से जल तत्व अदृश्य हो गया ।सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई और जीवन का अंत होने लगा तब ब्रह्मा जी विष्णु जी ऋषि गण तथा देवता मिलकर श्री शिव जी के शरण में गए और शिव जी से प्रार्थना की और बोले नाथों के नाथ आदिनाथ अब इस समस्या से आप ही निपटें । सृष्टि में पुन: जल तत्व कैसे आयेगा ।
देवों की विनती सुन कर भोलेनाथ ने ग्यारहों रुद्रों को बुलाकर पूछा आप में से कोई ऐसा है जो सृष्टि को पुनः जल तत्व प्रदान कर सके । दस रूदों ने इनकार कर दिया । ग्यारहवाँ रुद्र जिसका नाम हर था उसने कहा मेरे करतल में जल तत्व का पूर्ण निवास है ।
मैं सृष्टि को पुन: जल तत्व प्रदान करूँगा लेकिन इसके लिए मुझे अपना शरीर लगाना पड़ेगा और शरीर गलने के बाद इस सृष्टि से मेरा नामो निशान मिट जायेगा ।
तब भगवान शिव ने हर रूपी रूद्र को वरदान दिया और कहा:–
इस रौद्र रूपी शरीर के जलने के बाद तुम्हें नया शरीर और नया नाम प्राप्त होगा और मैं सम्पूर्ण रूप से तुम्हारे उस नये तन में निवास करेंगे जो सृष्टि के कल्याण हेतु होगा।
हर नामक रूद्र ने अपने शरीर को मिलाकर सृष्टि को जल तत्व प्रदान किया ।और उसी जल से एक महाबली वानर की उत्पत्ति हुई। जिसे हम हनुमान जी के नाम से जानते हैं ।
यह घटना सतयुग के चौथे चरण में घटी । शिवजी ने हनुमान जी को राम नाम का रसायन प्रदान किया।
हनुमान जी ने राम नाम का जप प्रारम्भ किया । त्रेतायुग में अंजना और केसरी के यहां पुत्र रूप में अवतरित हुए ।
इसलिए बाबा तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में कहा है:—शंकर स्वयं केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जग बन्दन