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आज की कहानी:साहब

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जब  साहब रिटायर होते  हैं  !
तब उनका सरकारी बँगला ,उसका हरा भरा लॉन ,
ड्राइवरों ,चपरासियों  के साथ बिना नागा नमस्ते करने वालों की भीड एकाएक साथ छोड़ जाती है ..
चूँकि
वो हमेशा से यह माने बैठा था कि
वह बहुत ज्ञानी है !
दफ़्तर चलना मुश्किल होगा ..उसके बिना !
लोग
आयेंगे सलाह मशविरे के लिये !
मार्गदर्शन देने लिये बैचेन रिटायर  साहब उम्मीद भरी आँखों से तकता है मार्ग !
पर
अफ़सोस !
कोई नही फटता !
वह
पाता है दुनिया उसकी उम्मीद से कहीं पहले बदल गयी है !
अब
उसे कार का दरवाज़ा ख़ुद खोलना पड़ता है और शॉपिंग के वक्त बिल भी ख़ुद ही चुकाना होता है !
बैचेन
साहब अब मिलनसार होने की कोशिश करता है !
शादी ,मुंडन से लेकर बारहवीं तक के हर न्योते की इज्जत करने लगता है !
वो
पाता है उसके सामने याचक बने रहने वाले रिश्तेदार अचानक निष्ठुर हो चले हैं!
हैरान  परेशान रिटायर साहब बाल डाई करना भूलने लगता है !
तेज़ी से बूढ़ा होता है ! चिड़चिड़ाहट लौट आती है .. उसकी !
हताश साहब घर मे साहबी करने की कोशिश करता है और मुँह की खाना है !
अन्ना बेटा कन्नी काटता है !
नाती पोते दूर भागते है ,
बीबी उसे नाक़ाबिले बर्दाश्त घोषित कर देती है !
और बड़े जतन से पाला पोसा गया कुत्ता तक उसे देख बेड के नीचे घुस जाता है !
ऐसे  में वो बढ़ता है और नाशुक्री दुनिया को गिराता है !
दुखी बना रहता है और आस पास वालों  को दुखी करता है !
रिटायर साहब और कर भी क्या सकता है ?
जब तक जीता है साहब ! यही करता है !
इन साहबों के अधिकतर बच्चे बहू बेटे नाती पोते इनसे दूर बहुत दूर विदेशों में या बड़े शहरों में शिफ्ट हो चुके होते हैं ..
ये अपना स्वयं का बनाया आलीशान  घर माया मोह के चक्कर में छोड़ नहीं पाते हैं …
नतीजों की जिंदगी अकेले ही कटती है ,
बीमारी अजारी में कोई साथ नहीं होता , खाना भी रूखा सूखा या फिर नौकर ने जो बना दिया ठूंसना पड़ता है ‘
खाने में मीन मेष की गुंजाइश नही रह जाती !
मरते वक्त भी कोई साथ नही होता ..
जब शव से भयंकर बदबू आती है तभी बगल वाला पुलिस को फोन कर !!
उफ्फ कितना डरावना और वीभत्स मानवीय लगता है न ये सब ?
इन सबके जिम्मेदार वो साहब खुद ही होते हैं क्यों ये माया जाल उन्ही का रचा होता है !
अतःसमय रहते सुधार आवश्यक है,साहबी छोड़ मानवीयता अपनाओ 

दोस्त बनाओ, अपनों को समय दो और दूसरों के काम आए ..

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