बहुत समय पहले, एक शहर के पास एक मंदिर बन रहा था जिसमें मजदूर लकड़ी की कई चीजें बनाने के लिए लट्ठों को चीर रहे थे. एक दिन जब सारे मज़दूर खाने के लिए गए तो उस दौरान एक लठ्टा जो आधा चिरा हुआ था, उसमें उन्होंने लकड़ी का खूँटा फँसा दिया ताकि वापस आने पर उसे काटने में आसानी रहे.
उसी बीच वहाँ बंदरों का एक ग्रुप आया जिसमें एक महा-शरारती बंदर था. बिना मतलब की खुराफ़ात करना उसकी आदत थी. तो सभी बंदर वहाँ पड़ी चीज़ों को बिना छुए पेड़ों की ओर चले गए लेकिन वह शैतान बंदर छुप कर वहीं रुक गया और लट्ठों को देखने लगा.
तभी उसने उस अधिरे लठ्टे को देखा जिसके बीच में खूँटा फँसा हुआ था. कुछ समझ न आने पर उसने पास पड़ी आरी को उठाकर उस लकड़ी पर रगड़ा जिससे अजीब-सी आवाज़ आई. अब उसने चिढ़ कर आरी पटक दी और सोचा कि इस खूँटे को लठ्टे से निकाल दूँ. यह सोचकर वह ज़ोर से खूँटा हिलाने लगा और ऐसा करते हुए खूँटा बाहर निकल आया और उसकी पूँछ लकड़ी के दो पाटों के बीच में फँस गयी. बंदर दर्द से चिल्लाया लेकिन तभी वहाँ मजदूर आ गए. अब बंदर ने भागने लिए फँसी हुई पूँछ के साथ जैसे ही ज़ोर लगाया तो उसकी पूँछ टूट गई और वह दर्द से चीखता हुआ अपनी टूटी पूँछ लेकर भाग गया.