उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सक्रियता ने पार्टी के केंद्रीय नेताओं और विपक्ष दोनों को चकित कर दिया है। मुख्यमंत्री योगी ने हाल ही में अपने मंत्रिमंडल के साथ बैठक की और उन्हें इन उपचुनावों में जीत हासिल करने के लिए विशिष्ट जिम्मेदारियां सौंपीं। इसके बाद से, मुख्यमंत्री नियमित रूप से मंत्रियों के साथ संवाद कर उपचुनाव वाली सीटों की जमीनी स्थिति का आकलन कर रहे हैं।
लोकसभा चुनावों में भाजपा को हुए नुकसान के बाद, योगी आदित्यनाथ की छवि पर भी असर पड़ा है। इसके अलावा, योगी की चिंता है कि इस नुकसान ने अन्य राज्यों में उनकी छवि को भी प्रभावित किया है। उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था और बुलडोजर नीति के कारण योगी आदित्यनाथ को अन्य राज्यों में भी प्रशंसा मिली है, लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणामों ने उनकी छवि को कमजोर किया है। इसलिए, मुख्यमंत्री ने उपचुनावों में जीत को अपनी प्राथमिकता बना लिया है।
योगी आदित्यनाथ की रणनीति में शामिल हैं—प्रदेश भर के भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेना और उपचुनाव की तैयारी शुरू करना। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया है कि पुलिस भर्ती परीक्षा के पेपर लीक के कारण युवाओं के बीच नाराजगी को देखते हुए नई परीक्षा की तारीख पहले ही घोषित की जाए। इसके अलावा, उपचुनावों की तारीखों के घोषित होने से पहले और भी बड़ी घोषणाएं की जाएंगी, जिससे माहौल बदल सकता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, और उपमुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक की इस सप्ताह दिल्ली में केंद्रीय नेताओं के साथ बैठक होने वाली है। इस बैठक में भाजपा को फिर से मजबूत करने का रोडमैप प्रस्तुत किया जाएगा।
इन 10 विधानसभा सीटों में से तीन भाजपा के पास थीं, जबकि पांच समाजवादी पार्टी के पास और एक-एक सीट एनडीए के सहयोगी दलों राष्ट्रीय लोक दल और निषाद पार्टी के पास थी। भाजपा का प्रयास है कि समाजवादी पार्टी से पांचों सीटें छीन ली जाएं। यह उपचुनाव सिर्फ भाजपा या एनडीए की जीत का मामला नहीं है, बल्कि योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा का भी प्रश्न बन गया है। अब देखना यह होगा कि योगी आदित्यनाथ इस मिशन में कितने सफल होते हैं।