इलाहाबाद उच्च न्यायालय आज मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में महत्वपूर्ण फैसला सुनाएगा। यह फैसला देवता और हिंदू पक्षों द्वारा दायर 18 मुकदमों की स्थिरता को चुनौती देने वाले शाही ईदगाह मस्जिद द्वारा दायर आवेदन पर आधारित है। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की पीठ विवाद से जुड़े सभी पक्षों की सुनवाई के बाद लगभग दो महीने पहले फैसला सुरक्षित रख चुकी है।
अदालत के समक्ष, शाही ईदगाह मस्जिद के प्रबंधन ट्रस्ट ने तर्क किया कि पूजा स्थलों के संबंध में लंबित मुकदमे एचसी अधिनियम 1991, परिसीमन अधिनियम 1963 और विशिष्ट राहत अधिनियम 1963 के तहत वर्जित हैं। मस्जिद समिति के वकील तस्नीम अहमदी ने तर्क किया कि एचसी के समक्ष लंबित अधिकांश मुकदमे भूमि के मालिकाना अधिकार की मांग कर रहे हैं, जो कि उक्त कानूनों के अंतर्गत नहीं आते।
वहीं, हिंदू वादी ने तर्क किया कि शाही ईदगाह के नाम पर सरकारी रिकॉर्ड में कोई संपत्ति नहीं है और उस पर अवैध रूप से कब्जा किया गया है। उन्होंने कहा कि यदि यह संपत्ति वक्फ संपत्ति है, तो वक्फ बोर्ड को यह स्पष्ट करना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की। इसके अलावा, उन्होंने यह भी तर्क किया कि पूजा अधिनियम, परिसीमन अधिनियम और वक्फ अधिनियम इस मामले में लागू नहीं होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इससे विवादित स्थल पर भविष्य की कानूनी स्थिति और संपत्ति के स्वामित्व पर स्पष्टता प्राप्त होगी। अदालत ने सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और अब अपने निर्णय की घड़ी में है।