हेमा आर्य
कक्षा-11
पोथिंग, कपकोट
उत्तराखंड
बरसात का मौसम आया है,
देखो, दिन कितना सुहाना है,
क्या हरियाली में तुमने कभी
किसी को दुखी पाया है?
परियों की दुनिया से निकली,
एक सुंदर सी काया है,
आकाश को देखकर दुनिया में,
सबके मन को भाया है,
क्या खूब था जब टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में,
चलते थे बरसात के मौसम में,
नदियां कल कल करती, पंछी चहचहाते हैं,
इंद्रधनुष की छाया देख बच्चे भी इठलाते हैं,
सावन का यह सुहानापन अलबेला सा लगता है
चरखा फीचर
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काश ! हमारे भी पंख होते
हरीश कुमार
पुंछ, जम्मू
बाल विवाह करके अपनी बेटी का,
क्यों पाप के भागी बनते हो?
पढ़ा लिखा कर बेटी को,
आगे बढ़ने क्यों नहीं देते हो?
पता है तुम अपनी बेटी को,
किस आग में धकेल रहे हो?
क्यों अपनी नन्ही परी के,
जीवन से तुम खेल रहे हो?
बेटियां तो पराया धन है,
यह कहकर पढ़ाई छुड़ा देते हो।
उसकी उम्र और इच्छा पूछे बिना,
उसकी शादी के पीछे पड़ जाते हो।
शादी के एक वर्ष में वह मां बन जाती है।
सास ननद के तानों से वह नहीं बच पाती है।
घर की जिम्मेदारियों में पल-पल पिसती रहती है।
तब वह अन्दर से टूट कर बिखर जाती है।
तब एक स्त्री अपने आपसे यह कहती है।
काश हमारे भी पंख होते।
हम भी अपने हौसलों की उड़ान भरते।
कम उम्र में शादी करके।
यूं ना अपनी जिंदगी नीलाम करते।
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