8 अगस्त को लोकसभा में पेश हुए वक्फ बिल पर जोरदार बहस हुई। इस बिल को लेकर इंडिया गठबंधन ने विरोध किया, जिसमें कांग्रेस, सपा, एनसीपी, एआईएमआईएम, टीएमसी, सीपीआईएम, और डीएमके शामिल थे। सपा सांसद ने धमकी दी कि यदि सरकार ने बिल में कोई बदलाव किया तो लोग सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर हो जाएंगे। इसके बीच, मोदी सरकार ने इस बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) के पास भेजने का निर्णय लिया, जिससे कि सभी पक्ष अपनी राय रख सकें।
वक्फ बोर्ड को लेकर लाए गए नए बिल में कुल 40 बदलाव प्रस्तावित हैं, जिनमें से एक प्रमुख बदलाव महिला भागीदारी बढ़ाने का है। नए प्रस्ताव के तहत वक्फ परिषद में दो महिलाओं को शामिल किया जाएगा। हालांकि, दिल्ली वक्फ बोर्ड के पूर्व सदस्य और दिल्ली बॉर काउंसिल के को-चेयरमैन एडवोकेट हमील अख्तर के अनुसार, वक्फ बोर्ड में पहले से ही दो महिला सदस्य रहती हैं। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने दिल्ली वक्फ बोर्ड की पूर्व सदस्य नईम फातिमा काज़मी और रजिया सुल्ताना का नाम लिया। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में भी सबिहा अहमद और तबस्सुम खान के नाम का उल्लेख किया।
मोदी सरकार ने वक्फ बिल को सीधे सदन में पास कराने के बजाय जेपीसी के पास भेजने का निर्णय लिया। इसका एक कारण यह है कि लोकसभा में स्थायी समिति अभी तक नहीं बनी है। स्थायी समिति के अध्यक्ष अक्सर विपक्षी दल के वरिष्ठ नेता होते हैं, जबकि जेपीसी के अध्यक्ष आमतौर पर सत्तारूढ़ दल का होता है। जेपीसी में सभी दलों की भागीदारी होती है, लेकिन सत्तारूढ़ दल के सदस्य अधिक होते हैं।