यह एक प्रचलित मुहावरा है, जिसका अर्थ होता है किसी के लिए परेशानी या मुसीबत बन जाना। कलकत्ता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर केस भी ममता बनर्जी के लिए ऐसी ही स्थिति बन चुका है, जिसे न तो निगलते बन रहा है और न ही उगलते। इस मामले में अस्पताल के डॉक्टर और स्टाफ ममता बनर्जी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि मृतक डॉक्टर के परिवार वाले भी ममता से नाराज हैं। बीजेपी ममता बनर्जी का इस्तीफा मांग रही है, और टीएमसी के अंदर भी उनके खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। ममता बनर्जी चारों तरफ से घिरती नजर आ रही हैं, और हालात उनके नियंत्रण से बाहर होते जा रहे हैं।
टीएमसी के नेता भी अब अपनी सर्वोच्च नेता के खिलाफ बोलने लगे हैं, जिससे पार्टी के अंदर एक असामान्य स्थिति उत्पन्न हो गई है। ममता बनर्जी ने जिस तरह से इस केस पर प्रतिक्रिया दी है, वह किसी को भी चुभ सकती है। आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल और बंगाल पुलिस की भूमिका भी संदेह के घेरे में है, जिससे ममता की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। यह सब उनके पुराने बयानों और प्रतिक्रिया का हिस्सा है।
ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ स्वास्थ्य और गृह मंत्री भी हैं। बावजूद इसके, बंगाल पुलिस ने जिस तरह से इस केस को हैंडल किया है, उस पर सवाल उठना लाजमी है। ममता ने ठोस कदम उठाने के बजाय खुद को पीड़ित के रूप में पेश करते हुए इस घटना को अपनी सरकार के खिलाफ साजिश बताया। यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि ममता बनर्जी का यही तरीका हर बार देखा गया है।
2012 में कोलकाता के पार्क स्ट्रीट गैंगरेप की घटना को ममता ने “शाजानो घोटोना” यानी नकली घटना बताया था। उन्होंने दावा किया कि यह उनकी सरकार को बदनाम करने के लिए गढ़ी गई थी।
2013 में कामदुनी गैंगरेप मर्डर केस में भी ममता ने कहा कि वहां के लोग सीपीएम समर्थक हैं और इसे उनकी सरकार के खिलाफ साजिश बताया।
2024 में भी ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया वही रही। उन्होंने इसे वाम और राम का कारनामा बताते हुए अपनी सरकार के खिलाफ साजिश करार दे दिया।