वैसे तो वर्ष की सभी एकादशी महत्वपूर्ण होती हैं पर आज हम पद्मा अर्थात देवझूलनी एकादशी की बात करेंगे जो कि भादौ महीने के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को आती है और जिसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्याधिक है। इस बार पद्मा एकादशी का व्रत 14 सितम्बर 2024 को शनिवार के दिन है।
भाद्रपद माह की शुक्ल एकादशी को हम विभिन्न नामों से जानते हैं :–
देव झूलनी एकादशी
इस दिन माता यशोदा द्वारा कृष्ण जन्म पर जलवा पूजन, सूरज पूजन या कहें कुआ पूजन किया गया और लोगों द्वारा झूला झुलाया गया था।
परिवर्तनी/पद्मा एकादशी
यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि आषाढ़ माह में शेष शैय्या पर निद्रामग्न भगवान विष्णु इस एकादशी पर क्षीरसागर में शयन करते हुए करवट बदलते हैं।
वामन एकादशी
इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से राज्य वापस लिया था।
डोल ग्यारस
कुछ क्षेत्रों में इसे “डोल ग्यारस” के नाम से भी जानते हैं, जहाँ भगवान विष्णु की प्रतिमा को डोली में बिठाकर जलाशय में ले जाया जाता है और वहाँ उन्हें झूला झुलाया जाता है।
जलझूलनी एकादशी
इस नाम से इसे इसलिए जाना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु को जल में झूलते हुए प्रतीकात्मक रूप से स्नान कराया जाता है।
जल झुलनी का यह विशेष नाम व्यापक रूप से गुजरात और स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा किया जाता है।
कुछ स्थानों पर जलझूलनी एकादशी को गोकुलाष्टमी या गोपाष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के गोपाल रूप की पूजा की जाती है।
जलझूलनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण की भी विशेष पूजा की जाती है, भक्तजन श्रीकृष्ण को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराते हैं और फिर उन्हें नए वस्त्र और आभूषण पहनाते हैं।
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के मिठाई और पकवानों का भोग लगाया जाता है। विशेष रूप से माखन-मिश्री, लड्डू, और पंजीरी का भोग अर्पित किया जाता है, जो भगवान श्री कृष्ण को प्रिय हैं।
इस दिन से जुड़ी एक और किंवदंती यह है कि भगवान कृष्ण गोपियों को वृंदावन में नौका विहार के लिए ले गए थे और बदले में दही की मांग की थी। इसलिए लोग इस दिन दही का दान करते हैं और बांटते हैं।
इस दिन पूजा के दौरान भगवान कृष्ण की मूर्ति को किसी झील या नदी में ले जाकर उसकी पूजा की जाती है और मूर्ति को नदी में नाव की सवारी पर भी ले जाया जाता है।
इस दिन दान का विशेष महत्व है अतः यथाशक्ति धन,अन्न, वस्त्र, अनाज,फल या मिष्ठान्न आदि का दान अवश्य करें।
जलझूलनी एकादशी व्रत वाले दिन श्री हरि की पूजा में उन्हें भोग लगाते समय उनकी प्रिय यानी तुलसी दल को जरूर चढ़ाना चाहिए और भगवान श्री विष्णु की कृपा पाने के लिए….
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
मंत्र का जाप अधिक से अधिक करना चाहिए।
एकादशी के व्रत को विधि विधान से रखते हुए अगले दिन आंवला खाकर पारण करना चाहिए मान्यता अनुसार इस उपाय को करने पर साधक को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
एकादशी के दिन पेड़ों से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए और विष्णु प्रिया कहलाने वाली तुलसी के पत्ते को भूलकर भी नहीं तोड़ना चाहिए इसलिए पूजा में चढ़ाने के लिए तुलसी दल हमेशा एकादशी के एक दिन पहले दिन ढलने से पहले तोड़ लेना चाहिए।
पद्मा एकादशी की कथा
परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा सुनी जाती है। अपने वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा ली थी। राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था, लेकिन उसमें एक गुण यह था कि वह अपने पास आए किसी भी ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं जाने देता थ। उसे दान अवश्य देता था। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने बलि को भगवान विष्णु की चाल से अवगत भी करवाया, लेकिन बावजूद उसके बलि ने वामन स्वरूप भगवान विष्णु को तीन पग जमीन देने का वचन दे दिया। दो पगों में ही भगवान विष्णु ने समस्त लोकों को नाप दिया तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो बलि ने अपना वचन पूरा करते हुए अपना शीष उनके पग के नीचे कर दिया। भगवान विष्णु की कृपा से बलि बरसात में पाताल लोक का राजा होकर वहां निवास करने लगा, लेकिन साथ ही उसने भगवान विष्णु को भी अपने यहां रहने के लिए वचनबद्ध कर लिया था।
परिवर्तिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
पंचांग के आधार पर भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि 13 सितंबर, 2024 दिन शुक्रवार को रात 10 बजकर 30 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इसका समापन 14 सितंबर, 2024 दिन शनिवार को रात 08 बजकर 41 मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए 14 सितंबर को परिवर्तनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा।