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एक चुनाव में एक देश: क्या है राज?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक और वादा पूरा करते हुए देश में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव मंजूर कर लिया है। मोदी कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है, जिसके तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। सरकार संसद के शीतकालीन सत्र (नवंबर-दिसंबर) में इस पर बिल पेश करने की योजना बना रही है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने मार्च में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का सुझाव दिया गया था। समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव संपन्न हो जाएं।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा, राज्यों की विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराए जाएं। प्रधानमंत्री मोदी लंबे समय से इस विचार का समर्थन करते आए हैं। उन्होंने कहा है कि चुनाव केवल तीन या चार महीने के लिए होने चाहिए, ताकि बाकी समय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। इससे चुनावी खर्च कम होगा और प्रशासनिक व्यवस्था पर अनावश्यक बोझ भी नहीं बढ़ेगा।

भारत में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ कोई नया विचार नहीं है। आजादी के बाद 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ कराए गए थे। लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।

मोदी सरकार इस प्रणाली को क्यों जरूरी मानती है, इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
चुनावी खर्च में कटौती : बार-बार चुनाव कराने से करोड़ों रुपये का खर्च होता है, जो इस व्यवस्था से कम किया जा सकेगा।
राजनीतिक स्थिरता : इससे देश में राजनीतिक स्थिरता आएगी और बार-बार नीतियों में बदलाव की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
विकास कार्यों पर ध्यान: सरकारें चुनावी मोड से बाहर निकलकर विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
प्रशासनिक लाभ : प्रशासनिक अधिकारियों का समय और ऊर्जा बचेगी, जिससे गवर्नेंस पर जोर दिया जा सकेगा।
आर्थिक फायदा : सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और आर्थिक विकास की गति तेज होगी।

रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने सुझाव दिया कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं और इसके 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव संपन्न हों। समिति ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन की आवश्यकता होगी, ताकि इस व्यवस्था को लागू किया जा सके। साथ ही भारत निर्वाचन आयोग को एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने की सिफारिश की गई है।

हालांकि, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर सभी राजनीतिक दलों के विचार एक जैसे नहीं हैं। कुछ दलों का मानना है कि इससे राष्ट्रीय दलों को फायदा होगा, जबकि क्षेत्रीय दलों को नुकसान हो सकता है। उनका यह भी तर्क है कि राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तरीय मुद्दे दब सकते हैं।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का उद्देश्य न केवल चुनावी खर्च को कम करना है, बल्कि देश में राजनीतिक स्थिरता लाना और विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना है। हालांकि, इसे लागू करने में चुनौतियां भी हैं, खासकर तब जब सभी राजनीतिक दलों की सहमति न हो।

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