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“गुरु नानक देव की पुण्यतिथि: सामाजिक ताना-बाना बदला, सिख धर्म की नींव रखी”

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आज ही के दिन, 22 सितंबर को, सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का निधन हुआ था। हर साल इस दिन उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है। गुरु नानक देव जी एक दार्शनिक थे, जिन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को देखकर बदलाव की आवश्यकता को महसूस किया।

गुरु नानक देव जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी (वर्तमान ननकाना साहिब) में कार्तिक माह की पूर्णिमा को हुआ था। बताया जाता है कि उनके बचपन में कई चमत्कारिक घटनाएं हुईं, जिसने उन्हें आध्यात्म की ओर प्रेरित किया।

गुरु नानक देव जी ने महज 5 साल की उम्र से ही अध्यात्म से जुड़ाव महसूस करना शुरू कर दिया। 13 साल की उम्र में उनका उपनयन संस्कार हुआ। उन्होंने सांसारिक मोह-माया को छोड़कर संत और समाज सुधारक के रूप में जीवन बिताने का निर्णय लिया। उनका जीवन समाज और प्राणी मात्र के लिए समर्पित था।

1500 ईस्वी में गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की। उन्होंने आत्मज्ञान और मोक्ष के उपदेश देकर समाज को मार्गदर्शित किया। हिंदू और इस्लाम के विचारों का समन्वय करते हुए, उन्होंने एक नई सोच और समुदाय की स्थापना की।

गुरु नानक देव जी ने करीब 30 वर्षों तक भारत, तिब्बत और अरब देशों में आध्यात्मिक यात्राएं कीं, जहां उन्होंने जन्म, मरण और ईश्वर जैसे मुद्दों पर अपने विचार साझा किए।

सिख धर्म के 10 गुरुओं में गुरु नानक देव जी का नाम सबसे पहले आता है। उन्होंने “इक ओंकार” का संदेश दिया, जिसका अर्थ है “ईश्वर एक है,” और आत्मा के परमात्मा से मिलन की बात करते हुए गुरु और ईश्वर की उपासना की सीख दी।

गुरु नानक देव जी का जीवन और उनके उपदेश आज भी समाज में परिवर्तन की प्रेरणा देते हैं।

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