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आज की कहानी-शादी में खाना

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मैं उस दिन भी एक शादी में बाउंसर के रूप में मौजूद था। आजकल का चलन हो गया है कि शादियों में हम बाउंसरों को काम दिया जाने लगा हैं।  हम शादी में अव्यवस्था होने से रोकते हैं, मेरे साथ मेरे तीन साथी और थे उसी शादी में।  मैं टीम लीडर हूँ।
मैं काफी देर से अपनी वैन में बैठा ड्रोन के ज़रिए, शादी की गहमा गहमी देख रहा था।  मैं लड़की वालों की तरफ से अरेन्ज किया गया था। मुझे एक अधेड़ से दिखने वाले आदमी की कुछ अजीब बातें दिखाईं दीं। पहली बात तो उसने जो खाना खाया, वो अपनी प्लेट में एक एक चीज ले जा रहा था, उन्हें खाकर ही फिर से आ रहा था। उसने खाना खत्म किया।

वो काफ़ी देर तक खाने की कैटरिंग की कतार को देखता रहा। फिर वो कैटरिंग के लोगों को जा जाकर निर्देष देने लगा।
फिर उसने खुद एक स्टाल पर खड़े होकर कमान संभाल ली। मुझे कुछ अजीब लग रहा था, मुझे लग रहा था ये कुछ ज्यादा ही केयरिंग हो रहा है कहीं कोई खाने का खोमचा गायब न कर दे।

मैंने अपने एक साथी को वैन में बुलाया और मैं उसकी जगह शादी के अन्दर टेंट में आ गया। मैं घूमते हुए उस आदमी के पास पहुँचा, उसका अभिवादन किया और फिर उसे इशारे से बुलाया। वो मेरे पास आ गया, मैंने उससे कहा आपसे बात करनी हैं ज़रा मेरे साथ आइए। वो मेरे साथ हो लिया। मैं उसे अपनी वैन के पास ले आया, वहाँ ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी।

मैं काफी देर से आपको वॉच कर रहा हूँ, आप कैटरिंग स्टॉल पर क्या कर रहे थे, आप शादी में आये हुए मेहमान लग रहे हैं,घराती तो हैं नहीं,आख़िर इरादा क्या हैं आपका ? मैंने कहा, पर कहने में सख्ती थी । मेरी बात सुनकर वो हँसने लगा, फिर संजीदा हुआ, मुझे अजीब लगा उसका व्यवहार।

“चार महीने पहले मेरी बेटी की भी शादी थी।” उसने ठंडी आह भरी।
“मेरे यहाँ दो हज़ार लोगों का खाना बना था। हम सही से मैनेज नहीं कर पाए, लोग भी ज्यादा आ गए।
बहुत सा खाना वेस्ट कर दिया गया, लोगों ने खाया कम थालियों में छोड़ा ज़्यादा…
बारात नाचने गाने में लेट हो गई और बारात जब तक खाने पर आती बहुत से खाने के आईटम कम पड़ गए।
मेरे समधी नाराज़ हो गए, बारात के खाने को लेकर बेटी को जब-तब ताने मिलते हैं।”

ये कहते हुए उसकी आँखें भीग गईं और गला भर्रा गया, ” मैं सोचता हूँ कि मेरे यहां खाने के मामले में सही कंट्रोल और निगरानी रख ली जाती, तो मेरी जो इज्जत गई वो बच जाती। अब मेरी कोशिश रहती है कि जिस किसी भी शादी में जाता हूँ, वहाँ खाने को बेमतलब वेस्ट न करके बचाया जाए।  इससे न केवल खाना बचेगा बल्कि किसी की इज्जत बची रहेगी,
तो सोचता हूँ भाई ‘खाना है बचा लु’  अब जाऊँ मैं ? आपकी इजाज़त हो तो, थोड़ा खाने की स्टाल पर निगरानी रख लूँ।” कहकर वो वहाँ से चला गया।

मुझे लग रहा था हम चार के अलावा एक पाँचवां बाउंसर और भी हैं, काश उस जैसे पचास आदमी और हों तो, सौ जनों का खाना बचाया जा सकता है।  मैंने उसके पीठ पीछे, उसके लिए ताली बजाईं और फिर से वैन में बैठकर ड्रोन उड़ाने लगा।

उतना ही लो अन्न महाराज थाली में – व्यर्थ नहीं हों जाये वह नाली में
प्रयास कीजिये कि हम पर भी कभी भोजन फेकनें की आरोप लगाने वाले की नौबत ना आये, इसलिए भोजन/प्रसाद के कार्यक्रमों में भोजन ज़रुरत के अनुसार ही बनायें तथा खाये। आप वो ही खाये, जो लेते हैं और उतना ही लें, जितना खाते हैं क्योकि भोजन की बर्बादी सबसे बड़ा महापाप हैं….

 
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