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आज की कहानी: रिश्ते

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कुछ महीने लंदन में अपनी बेटी के साथ रहने के बाद कामतानाथ प्रसाद ने सोच लिया कि अब वापिस अपने देश यानी भारत चला जाए हालाँकि उनके बेटी-दामाद ने उन्हें बहुत समझाया कि वापिस जाकर क्या करेंगे, अब वहाँ कोई ख़ास रिश्तेदार भी नहीं है, जो आपका ध्यान रखेगा और भगवान न करें, कल को कुछ हो गया तो आपके पास कौन होगा । मगर कामतानाथ कहाँ मानने वाले थें । उन्होंने इनकार करते हुए कहा कि तुम्हारी माँ सरला की बहुत याद आ रहीं है, कल रात तो वो मेरे सपने में आकर पूछने लगी कि वापिस कब आओंगे ? मुझे लग रहा है, जैसे वह मेरा इंतज़ार कर रहीं है । उनकी बेटी निधि ने फ़िर समझाते हुए कहा कि माँ को गुज़रे हुए दो साल हो चुके हैं । पुराना घर भी कब से बंद पड़ा है, एक साल से कोई किराएदार भी नहीं आया है । आपका मन नहीं लगेगा । मगर कामतानाथ को न मानना था और न वह माने । मारकर, उनके दामाद ने उनका भारत का टिकट करवा ही दिया । और दोनों ने उन्हें सख्त हिदायत दी कि वह जाते ही कोई किराएदार रख लेंगे या किसी रिश्तेदार को अपने साथ रहने के लिए बुला लेंगे ।

आज ठीक छह महीने बाद वापिस अपने देश आकर उन्हें अच्छा लग रहा है । उन्होंने दिल्ली एयरपोर्ट से टैक्सी ली और वहाँ से सीधा अपने घर बरेली रवाना हो गए । टैक्सी में बैठे हुए वह सोच रहें है कि बरेली छोड़े हुए कितने साल हो गए। उसी घर में उनका बचपन बीता, सरला से शादी हुई और फ़िर निधि भी वहीं पैदा हुई और जब वह बारह साल की थीं, तब दिल्ली के सरकारी बैंक में नौकरी लगने के कारण वह दिल्ली आ गए थें । जब तक माँ-बाबा ज़िंदा थें, तब तक तो उनका बरेली आना-जाना लगा रहता था । मगर पंद्रह साल पहले दोनों गुज़र गए। और दो साल पहले सरला की भी दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। और निधि भी अपने पति के साथ जाकर लंदन बस गई। जब तक नौकरी थीं, तब तक अकेलापन महसूस नहीं हुआ। मगर लंदन में रहते हुए उन्हें अपना घर, अपना गुज़रा हुआ कल, माँ-बाबूजी, सरला, सबकुछ याद आने लगा । इसलिए सोच लिया वापिस ही चलना है । टैक्सी वाले ने उनके घर के सामने आकर ब्रेक मारी तो वह अपनी सोच से बाहर आए । उन्होंने उसे पैसे दिए और घर का ताला खोला । अंदर जाकर देखा तो सभी सामान पर ढकी चादर पर धूल-मिट्टी सनी हुई हैं। उन्होंने अपना सूटकेस रखा, चादर उठाई और वहीं रखे सोफ़े पर बैठ गए। थकान के कारण उन्हें नींद आ गई । दो घंटे बाद उनकी आँख खोली तो उन्हें ऊपर की मंजिल से आती आवाजें सुनाई दीं । उन्होंने अपने साथ लाया पानी पिया और ऊपर की ओर चले गए । ऊपर के कमरे में ताला नहीं है । और दरवाजा खुला हुआ है , इस कमरे में कभी किराएदार रहते थें, अब यह कमरा सामान से खाली है। उन्होंने अंदर झाँककर देखा कि कबूतर , चिड़ियाँ और गौरैयाँ ने अपना घोंसला बना रखा है । सब उन्हें ऐसे देखने लगे कि जैसे यह घर उनका हों और वो अज़नबी हों । मादा कबूतरी तो कबूतर के कान में कुछ कहने लगी । जैसे मानों, पूछ रहीं हों, तुम इन्हे जानते हों? गौरैया अपने बच्चों और पति के साथ ऐसे बैठी है , जैसे वो सरला और निधि के साथ बैठते थें । चिड़ियाँ ने उन्हें देखकर भी अपने बच्चों को खाना खिलाना नहीं छोड़ा । उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई । अब वो छत पर गए तो देखा कि गिलहरी का परिवार भी आराम फरमा रहा है ।

शाम को घर से निकले तो देखा कि आसपास नए लोग आ गए हैं। पुराने पड़ोसी में रामलाल जी तो गुज़र गए, मगर उनके बेटे सोहम न उन्हें पहचान लिया और अपने घर ले जाकर उनका बहुत आदर-सत्कार दिया। उसकी मदद से उन्होंने अपने घर की सफ़ाई करवाई और खाने का सामान ख़रीदा । पानी की मोटर ठीक करवाई । सिलिंडर नया लिया ताकि खाना बन सकें। पंखे और बिजली के बल्ब नए लगवाए । वह बाजार से अपने खाने के सामान के साथ बाज़रा, चारा और पानी रखने के लिए मिट्टी का बर्तन भी ले आए ।

अब यह उनका रोज़ का नियम हो गया था कि वह रोज़ सुबह सैर को जाते, वहाँ से लौटकर सबसे पहले उस पक्षी समाज को दाना डालते, पानी रखते। और छत पर जाकर गिलहरी को भी खाना खिलाते। फ़िर अपना नाश्ता बनाते। अख़बार या पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ते और फिर ऊपर की मंजिल पर जाकर उनसे बात करते रहते। और वे बेजुबान प्राणी भी उनकी बातों को ध्यान से सुनते, जैसे सब समझ रहें हों। फ़िर शाम की चाय और रात का खाना भी उनके साथ बैठकर खाते । अब तो उन्होंने उनके नाम भी रख दिए। रानी चिड़िया, सोनी गौरैया , लक्का कबूतर और नीलू गिलहरी और इस तरह उनके बच्चों के नाम भी रख दिए। उन्होंने महादेवी वर्मा के पशु -पक्षियों पर आधार्रित रेखाचरित्र पढ़े थें । इसलिए उन्होंने लक्का कबूतर नाम उनके रेखाचित्र ‘नीलकंठ से लेकर रखा।

एक दिन वह सैर से लौट रहे थे तो उनके पीछे एक कुतिया और उसका बच्चा आने लगे । पहले तो उन्होंने अनदेखा कर दिया। पर जब वो घर तक पहुँच गए तो उन्होंने दोनों को दूध और ब्रेड खिलाई। इस तरह कई दिन होता रहा और एक दिन दोनों प्राणी मोहवश अंदर आ गए और फ़िर वे भी उसी घर के सदस्य बन गए । दोनों को भी नाम दे दिया गया, झूरी और झबला । ऐसे ही किसी अन्य दिन कामतानाथ जी ने पार्क में घायल बंदरिया के बच्चे की मरहम पट्टी कर दीं तो वह भी अपने बच्चे को लेकर उनके साथ हो लीं। और नाम मिला, चिंकी और टीलू ।
समय अपनी गति से गुज़रता जा रहा है । अब तो सभी प्राणी कामतानाथ जी के पूरे घर में उनके साथ

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