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“वोट की जगह आराम ने कैसे विभिषिका दी, सियालकोट इसका उदाहरण”

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मुज़फ़्फ़र रज़्मी का शेर है: “ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने, लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई।” भारत में चुनाव लोकतंत्र का उत्सव माने जाते हैं, लेकिन कई लोग इसे छुट्टी के दिन की तरह मानते हैं और मतदान में लापरवाही बरतते हैं। उन्हें लगता है कि एक वोट से क्या फर्क पड़ेगा, लेकिन इस सोच के परिणाम भयावह हो सकते हैं। यह सही उदाहरण है सियालकोट का, जहाँ एक वोट न देने की सजा कई पीढ़ियों को भुगतनी पड़ी।

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह का एक वायरल वीडियो इस विषय पर प्रकाश डालता है, जिसमें वह सियालकोट के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना का जिक्र करते हैं। सियालकोट, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है, लाहौर से 135 किलोमीटर और जम्मू से सिर्फ 42 किलोमीटर दूर है, एक समय हिंदू बहुल क्षेत्र था। बंटवारे के समय इस जिले का भविष्य जनमत संग्रह से तय किया गया था।

प्रदीप सिंह के मुताबिक, जब जनमत संग्रह के लिए मतदान की तारीख तय हुई, तो कुछ लोग लाइन में खड़े होकर इंतजार कर रहे थे कि शायद लाइन छोटी हो जाए। धीरे-धीरे उनकी आराम की आदत ने उन्हें वोट करने से रोक दिया। कुछ समय बाद, उन्होंने बिना वोट किए घर लौटने का फैसला किया। इस लापरवाही का नतीजा यह हुआ कि 55 हजार वोटों से यह प्रस्ताव पास हो गया, जिसमें सियालकोट को पाकिस्तान में शामिल करने का फैसला लिया गया।

सियालकोट में हिंदू आबादी उस समय 2 लाख 31 हजार थी, जिनमें से एक लाख लोगों ने वोट नहीं किया। परिणामस्वरूप, सियालकोट पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। यदि उस दिन हिंदू समुदाय ने मतदान किया होता, तो शायद इतिहास कुछ और होता।

1946 में जिन्ना के “डायरेक्ट एक्शन” के बाद सियालकोट में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंदू महिलाओं की इज्जत लूटी गई और उनका कत्लेआम किया गया। कई लोग जो आराम की सोचकर घर लौटे थे, वे हमेशा के लिए सो गए। 1951 में सियालकोट में हिंदू आबादी घटकर सिर्फ 10 हजार रह गई, और 2017 तक यह संख्या केवल 500 रह गई। यह आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि एक वोट न देने का क्या असर हो सकता है।

यह घटना हमें यह सिखाती है कि लोकतंत्र में हर वोट की अहमियत है। आराम या लापरवाही से किए गए चुनावी निर्णय आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित कर सकते हैं। इस तरह की घटनाएं हमें यह समझाती हैं कि हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी लोकतांत्रिक जिम्मेदारी निभाए, ताकि भविष्य में किसी को इस तरह की कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।

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