भारत और चीन के बीच तनाव कम होते हुए दिख रहा है। दोनों देशों ने 2020 से बंद कैलाश मानसरोवर यात्रा को इस साल गर्मियों में फिर से शुरू करने का निर्णय लिया है। यह सहमति भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री के दो दिवसीय चीन दौरे के दौरान बनी। विदेश मंत्रालय के अनुसार, यह कदम दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्व
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
कैलाश मानसरोवर हिंदू, जैन, बौद्ध और तिब्बती धर्मावलंबियों के लिए एक पवित्र स्थल है। इसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। कैलाश पर्वत 21,778 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और इसे त्रिमूर्ति शिव का घर माना जाता है। यह स्थल तिब्बती मान्यता के अनुसार मेरु पर्वत है, जिसे स्वर्ग और पृथ्वी को जोड़ने वाला केंद्र बिंदु कहा जाता है।
वैज्ञानिक और रहस्यमय पहलू
कैलाश पर्वत का पिरामिड जैसा आकार और इसकी अद्वितीय भौगोलिक संरचना इसे और भी खास बनाती है। कई वैज्ञानिक इसे अलौकिक ऊर्जा का केंद्र मानते हैं। रूसी और नासा के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार, इस पर्वत पर कई अद्भुत घटनाएं होती हैं, जैसे समय और स्थान की अनुभूति खो देना। यह भी माना जाता है कि पर्वत पर चढ़ाई करना असंभव है क्योंकि शिखर अपनी स्थिति बदल लेता है।
भारत-चीन संबंधों में सुधार
डिप्लोमैटिक पहल
भारत और चीन के बीच इस डील की शुरुआत 3750 किलोमीटर दूर रूस के कजान शहर में हुई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी। इस साल भारत और चीन अपने राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं।
सीधी उड़ान और वीजा सहमति
दोनों देशों ने इस वर्षगांठ को खास बनाने के लिए कई सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों पर सहमति जताई है। इसके तहत मीडिया संवाद, थिंक टैंक के बीच चर्चा और पीपल-टू-पीपल कनेक्टिविटी को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके अलावा, सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने और वीजा प्रक्रिया को सुगम बनाने पर भी सहमति बनी है।
भविष्य की संभावनाएं
कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना न केवल धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्तों की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह कदम दिखाता है कि बातचीत और कूटनीति के जरिए पुराने विवादों को सुलझाया जा सकता है।