गोस्वामी तुलसीदास जी बड़े प्रेमपूर्वक भगवान शंकर के दिव्य श्रृंगार का वर्णन करते हैं। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि संसार में अधिकांश लोग दूसरों की निंदा में लिप्त रहते हैं, लेकिन गोस्वामी जी ने भगवान शिव के अलौकिक सौंदर्य और लीलाओं का रसास्वादन किया।
भगवान शंकर का विशिष्ट श्रृंगार – नीला कंठ
भगवान शंकर के कई अलौकिक श्रृंगार हैं, जिनमें उनका नीला कंठ (गले का नीला होना) एक विशेष पहचान है। यह कोई साधारण अलंकरण नहीं, बल्कि एक महान दिव्य घटना का परिणाम है, जो शिव की करुणा और लोकहितकारी स्वरूप को दर्शाता है।
समुद्र मंथन और कालकूट विष
जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने हेतु समुद्र मंथन किया, तब उन्हें उम्मीद थी कि वे अमरत्व प्राप्त कर लेंगे। इस महायज्ञ में मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया। लेकिन इच्छाओं की पवित्रता ही सफलता दिलाती है, और देवताओं एवं असुरों की मंशा स्वार्थ से भरी थी।
अचानक समुद्र मंथन से अमृत के बजाय महाविषाक्त कालकूट विष निकला। यह विष इतना भयंकर था कि तीनों लोक—स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल—इसके प्रभाव से जलने लगे। सभी जीव त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगे।
भगवान शिव का लोककल्याणकारी निर्णय
देवता और असुर इस संकट से घबरा गए और पहले ब्रह्मा जी और फिर भगवान विष्णु के पास समाधान खोजने पहुंचे, लेकिन कोई उपाय नहीं मिला। तब सभी ने भगवान शंकर की शरण ली।