नई दिल्ली – भारत सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने आज फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का उद्घाटन भारत सरकार के पांच हितधारक मंत्रालयों और विभागों के सचिवों की उपस्थिति में किया गया जिनमें फार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव श्री अमित अग्रवाल; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रो. अभय करंदीकर; इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के सचिव श्री एस कृष्णन; वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) की सचिव तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की महानिदेशक (डीजी) डॉ. एन. कलैसेल्वी; स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) के सचिव तथा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल शामिल थे। इस कार्यशाला ने फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए साझी प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाने के लिए प्रमुख कार्य-बिंदुओं और दृष्टिकोणों की पहचान करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया।
फार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव श्री अमित अग्रवाल ने इस क्षेत्र में तेजी से हो रहे विस्तार के बारे में बताया। साथ ही भारत और दुनिया के लिए भारत में विनिर्माण और नवाचार को आगे बढ़ाने में अनुसंधान एवं नवाचार के महत्व को रेखांकित किया। इस संबंध में, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि मूल्य के आधार पर शीर्ष-100 दवाओं में पर्सनलाइज़ और सटीक प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों (जैसे एंटीबॉडी-ड्रग कंजुगेट, द्वि-विशिष्ट एंटीबॉडी और सेल व जीन थेरेपी) की वैश्विक हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है, जो 2020 के 5 प्रतिशत से बढ़कर 2025 में 9 प्रतिशत हो गई और 2030 तक 20 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है। उन्होंने पिछले चार वर्षों में इंडियन हेल्थकेयर एंड लाइफ साइंसेज स्टार्टअप की संख्या में 10 गुना वृद्धि पर भी प्रकाश डाला, जो 2020 के 900 से अधिक से बढ़कर 2024 में 10,000 से अधिक हो गई, साथ ही भारतीय फर्मों के अभिनव उत्पादों में भी वृद्धि हो रही है।
श्री अमित अग्रवाल ने कहा कि भारतीय स्टार्टअप और उद्योग के इस बढ़ते नवाचार इकोसिस्टम के माध्यम से पीआरआईपी योजना के लिए परियोजनाओं हेतु आधारभूत कार्य किए जा रहे है, जो वैज्ञानिक मंत्रालयों/विभागों की पहलों की एक विस्तृत श्रृंखला द्वारा समर्थित है। इनमें सीएसआईआर द्वारा अपनी इंटेंट पहल के तहत बनाया गया क्लीनिकल ट्रायल नेटवर्क; डीएसटी के टीआईएफएसी और आईसीएमआर की पेटेंट मित्र पहल के माध्यम से उपलब्ध पेटेंट सहायता; आईसीएमआर की मेडटेक मित्र पहल के माध्यम से चिकित्सा प्रौद्योगिकी और दवा संबंधी नवाचारों के लिए उपलब्ध सहायता; जैव प्रौद्योगिकी विभाग के बीआईआरएसी, एमईआईटीवाई की टीआईडीई 2.0 और एसएएमआरआईडीएच योजनाओं तथा डीएसटी के क्वांटम कंप्यूटिंग मिशन आदि के माध्यम से स्टार्टअप्स के लिए उपलब्ध वित्त पोषण सहायता शामिल है।
एक मजबूत रिसर्च इकोसिस्टम के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए, श्री अमित ने कहा कि पीआरआईपी एक परिवर्तनकारी पहल है जिसका उद्देश्य नवाचार को उत्प्रेरित करना, उद्योग-अकादमिक संबंधों को मजबूत करना और भारत को फार्मास्यूटिकल एवं मेडटेक अनुसंधान में वैश्विक स्तर पर अग्रणी के रूप में स्थापित करना है।
डीएसटी के सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर ने फार्मास्यूटिकल्स और मेडटेक में प्रगति को आगे बढ़ाने, भारत के स्वास्थ्य सेवा इकोसिस्टम को मजबूत करने में अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के महत्व को रेखांकित किया तथा डीएसटी के व्यापक इनक्यूबेटर और एक्सेलेरेटर नेटवर्क के माध्यम से उपलब्ध सहायता के बारे में बताया।
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव श्री एस. कृष्णन ने दवा की खोज और चिकित्सा उपकरण विकास में डिजिटल स्वास्थ्य, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) व डेटा-आधारित प्रौद्योगिकियों की परिवर्तनकारी क्षमता पर जोर दिया। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के संगठनों जैसे कि सोसाइटी फॉर एप्लाइड माइक्रोवेव इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग एंड रिसर्च (एसएएमईईआर), सी-डैक और सेंटर फॉर मैटेरियल्स फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी (सी-मेट) की अनुसंधान क्षमता पर प्रकाश डाला।
डीएचआर के सचिव और आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने फार्मास्यूटिकल इनोवेशन को गति देने में नैदानिक अनुसंधान, स्वदेशी दवा विकास और विनियामक प्रगति की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने पीआरआईपी योजना के साझे लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में आईसीएमआर इंटेंट, मेडटेक मित्र और पेटेंट मित्र पहलों के पूर्ण समर्थन की पेशकश की। उन्होंने यह भी कहा कि इस योजना के तहत उद्योग-अकादमिक सहयोगात्मक अनुसंधान विंडो आईसीएमआर द्वारा वित्तपोषित किए जा रहे इंट्राम्यूरल एवं एक्स्ट्राम्यूरल अनुसंधान को पीआरआईपी और उद्योग की भागीदारी से बाजार में आगे बढ़ाने में काफी मददगार हो सकती है।
डीएसआईआर की सचिव और सीएसआईआर की महानिदेशक डॉ. एन. कलैसेल्वी ने अनुसंधान संस्थानों और उद्योग के बीच वैज्ञानिक सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि अनुसंधान को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य अनुप्रयोगों में सहजता से परिवर्तित किया जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि सीएसआईआर प्रयोगशालाओं में किए गए महत्वपूर्ण अनुसंधान को उद्योग के साथ सहयोग और पीआरआईपी से वित्त पोषण के माध्यम से बाजार में लाया जा सकता है।
सभी प्रतिभागियों से अनुरोध किया गया कि वे फार्मास्यूटिकल्स विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध पीआरआईपी योजना के लिए रुचि की अभिव्यक्ति (ईओआई) फॉर्म में अपने सुझाव साझा करें, ताकि योजना को आगे बढ़ाते समय और प्रतिभागियों को सक्षम बनाते समय इन सुझावों पर ध्यान दिया जा सके। ईओआई 7 अप्रैल, 2025 तक खुला रहेगी।