एकेनापि हि शूरेण,
पादाक्रांतं महीतलम्।
क्रीयते भास्करेणेव,
स्फारस्फुरिततेेजसा।।नीतिशतकम्- श्लोक १०७
पादाक्रांतं महीतलम्।
क्रीयते भास्करेणेव,
स्फारस्फुरिततेेजसा।।नीतिशतकम्- श्लोक १०७
जिस प्रकार एक ही दीप्तमान सूर्य के तेज से समस्त भूमंडल आक्रांत हो जाता है, उसी प्रकार एक ही तेजस्वी शूर के चरणों के तले समस्त विश्व आ जाता है।
Just as the whole earth is engulfed by the effulgence of a single resplendent Sun, in the same way, the whole world comes under the feet of a single resplendent warrior.