पितृ पक्ष के महत्वपूर्ण पहलुओं का अध्ययन करने से हम जान सकते हैं कि हिन्दू धर्म में इसे विशेष महत्व दिया जाता है। पितृ पक्ष, हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलता है।
पितृ पक्ष में पूर्वजों और पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन मृत्यु लोक से पितृ धरती लोक पर आते हैं, इसलिए पितृपक्ष के दौरान तर्पण और श्राद्ध करने से पितरों को खुश किया जा सकता है और आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
यहां पितृ पक्ष के त्योहार के तीन हफ्तों के आयोजन की तिथियों का विवरण दिया गया है:
- 29 सितंबर पूर्णिमा श्राद्ध
- 30 सितंबर प्रतिपदा और द्वितीय श्राद्ध
- 1 अक्तूबर तृतीया श्राद्ध
- दो अक्तूबर चतुर्थी श्राद्ध
- तीन अक्तूबर पंचमी श्राद्ध
- चार अक्तूबर षष्ठी श्राद्ध
- पांच अक्तूबर सप्तमी श्राद्ध
- छह अक्तूबर अष्टमी श्राद्ध
- सात अक्तूबर नवमी श्राद्ध
- आठ अक्तूबर को दशमी श्राद्ध
- नौ अक्तूबर को एकादशी श्राद्ध
- 11 अक्तूबर को द्वादशी श्राद्ध
- 12 अक्तूबर को त्रयोदशी श्राद्ध
- 13 अक्तूबर को चतुर्दशी
- 14 अक्तूबर को सर्व पितृ आमवस्या श्राद्ध होगा।
पितृ पक्ष के दौरान, श्राद्ध के रूप में पितरों का समर्पण करने और उनके लिए तर्पण करने की परंपरा होती है। इसके अलावा, पितृपक्ष के दौरान दान और ब्राह्मणों को भोजन कराने का अभिमान्य महत्व होता है, जिससे पितरों की शांति और मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
*पितृ पक्ष के इन त्योहारों का पालन करते समय हम अपने पूर्वजों का समर्पण करते हैं और उनके आत्मा को शांति देने का संकल्प लेते हैं। इसके माध्यम से हम अपने संगठन और परिवार का समर्थन और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जो हमारे
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