एक कार्यक्रम में ए.पी.जे अब्दुल कलाम जी से पूछा गया कि आपके जीवन का वह कौन सा प्रसंग था , जिससे आपको अपने जीवन की सार्थकता का अनुभव अनेक लोगों के जीवन के अन्यान्य पक्ष यथा उनके डॉक्टरेट करने रॉकेट के सफल परीक्षण , राष्ट्रपति बनने आदि के प्रसंगों में से सोच रहे थे। तभी उन्होंने कहा कि एक बार हैदराबाद के निजाम हॉस्पिटल में पोलियो पीड़ित बच्चों को मिला।
ध्यान में आया कि उनका ‘ कैलिपर्स ‘ तीन – तीन किलो वजन के है , जो उन्हें चलने में कष्ट दे रहे है। डॉक्टरों से पूछने पर वे भी इसका निदान न बता सके। कलाम ने बताया वे सीधे इसरो की प्रयोगशाला में गये और यह समस्या अपने मित्र वैज्ञानिकों के सामने रखी।
तीन सप्ताह की कड़ी मेहनत में रॉकेट में उपयोगी लोहे से 300 ग्राम का कैलिपर्स तैयार हो गया। जब मैंने उन बच्चों को इन कैलिपर्स को पहनकर खुशी से झूमते देखा उनके माता-पिता और डॉक्टरों की आंखों में जब खुशी के आंसू देखे तो मेरे नेत्र भी प्रसन्नता से भीग गए।
कथा का मूल सार – जीवन की सार्थकता दूसरों की सेवा में ही है , समाज की से ही नारायण की सेवा संभव है।