नई दिल्ली,(नेशनल थॉट्स ) – सनातन धर्म में करवा चौथ का विशेष महत्व है। इस पर्व को विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। इस वर्ष, यह पर्व 1 नवंबर को मनाया जाएगा।
सुहागन महिलाएं इस व्रत की आगाही से बेताब होती हैं, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को प्रतिवर्ष आती है। इस दिन, चंद्रमा को छलनी के माध्यम से देखने का विशेष महत्व है, जो एक प्राचीन परंपरा है और इसका पालन दशों सालों से किया जा रहा है।
करवा चौथ के दिन, चंद्रमा को सीधे नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने का निषेध है। इसके बजाय, इस दिन चंद्रमा को किसी और की आड़ में देखना चाहिए। इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि छलनी से अपने पति के मुख को देखकर पति की आयु बढ़ जाती है, जैसे कि छलनी में सैकड़ों छेद होते हैं। इसलिए इस दिन, चंद्रमा और पति को छलनी के माध्यम से देखा जाता है।
करवा चौथ कथा:
करवा चौथ के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें से एक कथा है, जिसका वर्णन निम्नलिखित है। करवा नामक एक महिला थी, जो भद्रा नदी के किनारे निवास करती थी। एक दिन, उसके पति नदी में स्नान कर रहे थे, जब अचानक एक मगरमच्छ ने उन्हें पकड़ लिया।
इस भयानक परिस्थिति में, करवा ने अपने पति की सुरक्षा के लिए मृत्यु के देवता यमराज से बेहद प्रार्थना की। उसकी भक्ति ने यमराज को प्रभावित किया, और उन्होंने उसे एक विशेष आशीर्वाद दिया, जिसके अनुसार, जिस महिला ने इस दिन उसके नाम पर व्रत रखा, उसके पति को लम्बी आयु का वरदान मिलेगा।
इसके अलावा धार्मिक ग्रंथों में करवा चौथ के दौरान भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का विधान है। इस शुभ दिन पर, भक्त मां पार्वती के साथ भगवान कार्तिकेय की भी पूजा करते हैं।