रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान ।।बचपन में यह दोहा सुना था। उसके पीछे छिपी हुई कहानी को आज आपके सामने एक प्रेरक प्रसंग के जरिए प्रस्तुत कर रहे है :
प्राचीन काल में एक वरदराज नाम का शिष्य हुआ। वह गुरुकुल में रहता तो था विद्या पढ़ने के लिए, पर विद्या तो शायद उससे रूठी हुई थी। उसे ना कुछ याद होता और ना ही कुछ समझ में आता था। अब तो साथी बच्चे भी उसे चिढ़ाते रहते थे और उसे वरदाजे वैला का राजा कहकर बुलाते थे। यूं ही 12 साल आश्रम में उसके व्यर्थ में बीत गए। उसका किशोरावस्था खत्म होकर युवावस्था भी गया।
वरदराज के गुरु ने भी काफी प्रयत्न किए कि वह पढ़ लिख कर किसी काबिल बन जाये लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। थकहार कर एक दिन गुरु जी ने वरदराज से कह ही दिया कि वरदराज तुम अपने गाँव वापस लौट जाओं। विद्या ग्रहण करना तुम्हारें बस की बात नहीं हैं। तुम्हारी बुद्धि तो पत्थर बन चुकीं है। और पत्थर को खुरचना मुश्किल ही नहीं नामुमिकन है।
जो पानी खींचते समय बार-बार रस्सी के नीचे ऊपर जाने-आने से पड़ा था। यह देखकर वह गंभीरतापूर्वक सोचने लगा कि जब बार-बार इस रगड़ रूपी अभ्यास के कारण इस कुएं के कठोर पत्थर पर निशान पड़ सकता है तो कोई कारण नहीं कि मेरी मोटी बुद्धि निश्चय पूर्वक मेहनत करने से सही काम न करने लगे।
ऐसा विचार कर तुरंत उसने घर जाने का इरादा छोड़ दिया और वापिस पाठशाला पहुंचकर गुरूजी से बोला’ “गुरूजी आप मुझे एक अवसर और प्रदान कीजिए। मैं इस बार अपने अभ्यास से अपनी पत्थर बुद्धि पर निशान बना कर दिखाउंगा। फिर वह बड़े उत्साह से पूरी मेहनत और दिलचस्पी से पढ़ने लगा।
शिक्षा – प्रिय बच्चों! अभ्यास से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। कोई भी मनुष्य बचपन से ही किसी कार्य में पारंगत पैदा नहीं होता है। बार – बार अभ्यास और प्रयत्न के आधार पर किसी भी क्षेत्र में कुशल बना जा सकता है।