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विष्णु मोहन तिवारी :- आज फिर से एक वृक्ष की जानकारी शेयर कर रहा हूँ. यह बरगद प्रजाति का ही एक वृक्ष है जिसे हम कृष्णवट कहते हैं. कृष्णवट भारत के कुछ भागों में पाये जाने वाले एक विशेष प्रकार के बरगद के वृक्ष को कहा जाता है। इसके पत्ते मुड़े हुए होते हैं। ये देखने में दोने के आकार के होते हैं। कृष्णवट के पत्तों में दूध, दही, मक्खन जैसे खाद्य पदार्थों का आसानी से सेवन किया जा सकता है।

इसको कृष्णवट या माखन कटोरी कहने के पीछे की कहानी भी श्री कृष्णा और उनके बचपन की लीला से जुड़ी है. इस वृक्ष के सम्बन्ध में यह मान्यता है कि भगवान कृष्ण बाल्यावस्था से ही गायों को चराने के लिए वन में जाया करते थे। जब गाय चर रही होती थीं, तब कृष्ण किसी वृक्ष पर बैठकर मधुर बांसुरी बजाया करते थे। बाँसुरी की आवाज सुनते ही गोपियाँ सभी कार्य छोड़ कर उनके पास दौड़ी चली आती थीं।

वे अपने साथ दही-मक्खन आदि भी ले आती थीं। कृष्ण जिस स्थान पर बैठकर बांसुरी बजाया करते थे, उसके पास ही बरगद का एक पेड़ था। वह बरगद के पत्ते तोड़ते और दोने बनाते और दही-मख्खन आदि रखकर गोपियों के साथ खाते।
कृष्ण को बरगद के पत्तों से दोने बनाने में बहुत समय लगता था और गोपियाँ भी बेचैनी अनुभव करने लगती थीं। कृष्ण गोपियों के मन की बात सच समझ गये। उन्होंने तुरंत ही अपनी माया से वृक्ष के सभी पत्तों को दोनों के आकार वाले पत्तों में बदल दिया। इस प्रकार बरगद की एक नई प्रजाति का जन्म हुआ।

प्राप्ति स्थान
वर्तमान समय में भी दोने के आकार के पत्तों वाले बरगद के वृक्ष पाये जाते हैं। इनका आकार सामान्य बरगद से कुछ छोटा होता है। पश्चिम बंगाल में कृष्णवट कहीं-कहीं देखने को मिल जाता है। उत्तराखंड में देहरादून स्थित ‘भारतीय वन्यजीव संस्थान’ में भी कृष्णवट के कुछ वृक्ष हैं। आज भी इसका एक वृक्ष उत्तर प्रदेश के राज भवन में सरंक्षित है. अभी हाल में ही राजस्थान के राजभवन में श्री कल्याण सिंह जी ने एक कृष्णवट का वृक्षारोपण कर इसके संरक्षण अभियान की शुरुआत की. श्री राधे की अनुकंपा के साथ मां यमुना की गोद में पल्लवित हुए इस वृक्ष को नमन करते हुए सभी साथियों से एक बार फिर कहना है और फिर से कहे #अविरल यमुना निर्मल यमुना, हरित हो यमुना सपना अपना.