Agnipath Protest : योजना के उपद्रवियों और जुमे के दंगाइयों में क्या अंतर ?
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जुमे की नमाज के बाद हुए उपद्रव और अग्निपथ स्कीम के विरोध में हुए बवाल में क्या अंतर
राजेश कुमार आर्य – बिहार ( नेशनल थॉट्स ) : 3 और 10 जून को जुमे की नमाज के बाद कुछ मुसलमानों द्वारा किया गया उपद्रव अराजक था | जिसके बाद प्रदेश सरकारों ने उपद्रवियों के चेहरे बेनकाब किए, मास्टरमाइंडों के घरों पर बुल्डोजर चलवाए | यह सब ठीक है | लेकिन बीते दिन मोदी सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ छात्रों के उपद्रव पर सरकारें खामोश बैठी रहीं |
प्रशासन भी संवेदनशील क्यों ?
पुलिस तो ऐसी संवेदनशील नजर आई, कि पूछिए मत. क्या कोई उपद्रव जायज और दूसरा नाजायज होता है? देश एक बार फिर उपद्रवियों के निशाने पर है | इस बार मुद्दा नौकरी है | सेना में नौकरी, फ़ौज में भर्ती के लिए लॉन्च की गई अग्निपथ स्कीम सरकार के गले की हड्डी बन गयी है | चाहे वो बिहार हो या फिर राजस्थान, यूपी से लेकर हरियाणा तक युवा सड़कों पर उतर आए हैं |
कई जगह ट्रेनें जलाई गई
विरोध के चलते कहीं ट्रेन की बोगी जला दी गयी है तो कहीं पर लोग पटरियां उखाड़ रहे हैं | कहीं पुलिस पर पथराव हो रहा है तो कहीं रोडवेज की बसों के शीशे फोड़े जा रहे हैं | हाई वे जाम करने से लेकर अपनी गतिविधियों से जनजीवन प्रभावित करने तक प्रदर्शनकारी विरोध का नाम देकर देश की संपदा को, संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं |
दोनों ही उपद्रवियों को न तो कानून इजाजत देता है और न संविधान
सोचने की बात यह है कि जैसे जुमे को नमाज के बाद मुसलमानों द्वारा किया गया उपद्रव अराजक है | वैसा ही छात्रों का उपद्रव भी निंदनीय है | सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान कोई भी करे, बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए | अगर सरकार जुमे को सड़क पर उतरे दंगाइयों के पोस्टर चिपका रही है |
उनके घर बुलडोजर से गिरा रही है | तो सरकार को यही रुख उन लोगों के लिए भी रखना होगा जिन्होंने मुंगेर, सहरसा, आरा छपरा और मुजफ्फरपुर हो या फिर अलीगढ़, मेरठ, मुजफ्फरनगर और राजस्थान के अलग अलग शहरों में बवाल काटा और वो किया जिसकी इजाजत न तो कानून ही देता है और न संविधान |