फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व होता है। आंवले को संस्कृत में आमलकी कहा जाता है, इसलिए इसे आमलकी एकादशी कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु को आंवले का वृक्ष अत्यंत प्रिय है और इसके हर भाग में उनका वास माना जाता है।
जड़ में भगवान विष्णु
तने में भगवान शिव
ऊपरी भाग में ब्रह्म देव
टहनियों में मुनि और देवता
पत्तों में वसु
फूलों में मरुद्गण
फलों में सभी प्रजातियों का वास माना जाता है।
इसी कारण इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है।
आमलकी एकादशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
व्रत तिथि – 10 मार्च 2025
एकादशी तिथि प्रारंभ – 9 मार्च 2025, सुबह 07:45 बजे
एकादशी तिथि समाप्ति – 10 मार्च 2025, सुबह 07:44 बजे
व्रत पारण का समय – 11 मार्च 2025, सुबह 06:50 से 08:13 बजे तक
द्वादशी समाप्ति – 11 मार्च 2025, सुबह 08:13 बजे
आमलकी एकादशी की पूजा विधि
स्नान व संकल्प – प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु की पूजा – श्रीहरि को गंगाजल से स्नान कराएं और पीले वस्त्र, पीले फल-फूल, तथा मिठाई अर्पित करें।
आंवले के वृक्ष की पूजा – वृक्ष को जल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि चढ़ाएं और परिक्रमा करें।
मंत्र जाप व कथा – भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और आमलकी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
दान-पुण्य – जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
व्रत पारण – द्वादशी तिथि के दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।
आंवले के पेड़ का महत्व
गौदान के समान पुण्य – केवल आंवले के पेड़ का स्मरण करने से गौदान के बराबर फल मिलता है।
सुख-समृद्धि – वृक्ष को स्पर्श करने से दोगुना फल, और आंवला खाने से तीन गुना फल प्राप्त होता है।
सभी रोगों से मुक्ति – आयुर्वेद के अनुसार, आंवला शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।
आमलकी एकादशी पर भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन श्रद्धा भाव से व्रत रखने और दान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।