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अम्माँ (मदर्स डे पर कविता)

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अंतरराष्ट्रीय मातृत्व दिवस माताओं एवं नेतृत्व का सम्मान करने वाला दिन होता है। एक मां ही होती है जो सभी की जगह ले सकती है। लेकिन उसकी जगह कोई और नहीं ले सकता है। मां अपने बच्चों की हर प्रकार से रक्षा और उनकी देखभाल करती है। इसलिए मां को ईश्वर का दूसरा रूप कहा जाता है।

गेरू से चौक पूरा कर, सजा रंगोली द्वार ।

हर दिन अम्माँ के लिए, होता था त्योहार ।।

 

उठतीं पहले भोर से, सोते उसके बाद ।

न थकने का था मिला, उनको देव-प्रसाद ।।

 

पढ़ बाबू की डायरी, खुला राज ये आप ।

अम्माँ भी थी चटपटी, जैसे आलू चाप ।।

 

अम्मा हुईं पचास की, मिला नहीं विश्राम |

अम्माँ के साथी हुए, मूव, त्रिफला, बाम ।।

 

आया जब मुश्किल समय, दस्तक देने द्वार ।

चढ़ा चटकनी बन गईं, अम्माँ पहरेदार ।।

 

धोती सूती छह गजी, अम्मा की पोशाक ।

एक छोर आँसू पूछे, दूजे बहती नाक ।।

 

 

 

अम्मा ने हरदम किया, सबका ही सम्मान |

रिश्तों में देखा नहीं, नफा और नुकसान ||

 

खुद से कभी डिगा नहीं, अम्मा का विश्वास |

अम्मा रख कर खुश रहीं, पीड़ा अपने पास ||

 

पाँच बरस पूरे हुए, गए गगन के पाठ ।

यादों में अम्माँ रहीं, सदा हमारे साथ ।।

 

अम्माँ के निर्माण से, रिक्त हुआ संसार ।

थाली से गायब हुए, चटनी और अचार ।।

 

अम्माँ के जाते, हुए, सब इतने असहाय ।

दिन-दिन भर दिन भूखे रहे, मिट्ठू, कुत्ता, गाय ।।

 

अम्माँ जी तुम क्या गईं, हम भूले परवाज ।

छूट गए त्योहार कुछ, बदले रीति रिवाज ।।

 

पंजीरी का लगा नहीं, ऐसा रहा संयोग ।

 

 

अम्माँ जी के बाद फिर, लड्डू जी को भोग ।।

 

अम्मा से सीखा यह, सारे धर्म समान |

तुलसी, मीरा को पढ़ा, साथ पढ़े रसखान ||

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