You Must Grow
India Must Grow

NATIONAL THOUGHTS

A Web Portal Of Positive Journalism 

बद्रीनाथ कथा

Share This Post

हिन्दुओं के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु का निवास स्थल है। यह भारत के उत्तरांचल राज्य में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है। गंगा नदी की मुख्यधारा के किनारे बसा यह तीर्थ स्थल हिमालय में समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। आओ जानते हैं इसके 10 रहस्य।1.केदारनाथ के यहां भगवान शंकर को आराम करने का स्थान माना गया है वहीं बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं। यहां बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यान मुद्रा में है। यहां नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञान ज्योति का प्रतीक है।

2.बद्रीनाथ का नाम इसलिए बद्रीनाथ है क्योंकि यहां प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली जंगली बेरी को बद्री कहते हैं। इसी कारण इस धाम का नाम बद्री पड़ा। यहां भगवान विष्णु का विशाल मंदिर है और यह संपूर्ण क्षेत्र प्रकृति की गोद में स्थित है।

3.केदार घाटी में दो पहाड़ हैं- नर और नारायण पर्वत। विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। उनके तप से प्रसन्न होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे। दूसरी ओर बद्रीनाथ धाम है जहां भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। कहते हैं कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी। भगवान केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद बद्री क्षेत्र में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है। इसी आशय को शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में भी व्यक्त किया गया है।

4.पुराणों अनुसार भूकंप, जल प्रलय और सूखे के बाद गंगा लुप्त हो जाएगी और इसी गंगा की कथा के साथ जुड़ी है बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थ स्थल की रोचक कहानी। भविष्य में नहीं होंगे बद्रीनाथ के दर्शन, क्योंकि माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्य बद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। यह भी मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है। जिस दिन यह हाथ लुप्त हो जाएगा उस दिन बद्री और केदारनाथ तीर्थ स्थल भी लुप्त होना प्रारंभ हो जाएंगे।
5.मंदिर में बद्रीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति भी है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सव मूर्ति है। उत्सवमूर्ती शीतकाल में बर्फ जमने पर जोशीमठ में ले जाई जाती है। उद्धवजी के पास ही चरण पादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है।

6.भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर की ऊंचाई 7,138 मीटर है। बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।

7. बद्रीनाथ में अन्य कई प्राचीन स्थल हैं। जैसे अलकनंदा के तट पर स्थित अद्भुत गर्म झरना जिसे ‘तप्त कुंड’ कहा जाता है। एक समतल चबूतरा जिसे ‘ब्रह्म कपाल’ कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में उल्लिखित एक ‘सांप’ शिल्ला है। शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड ‘शेषनेत्र’ है। भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं- ‘चरण पादुका’। बद्रीनाथ से नजर आने वाला बर्फ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ, जो ‘गढ़वाल क्वीन’ के नाम से जाना जाता है।

8.पौराणिक कथाओं और यहां की लोक कथाओं के अनुसार यहां नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया था। कहते हैं कि भगवान विष्णु जी अपने ध्यान योग और विश्राम हेतु एक उपयुक्त स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उस वक्त यह स्थान भगवान शंकर और पार्वती का निवास स्थान था। ऐसे में विष्णु के एक युक्ति सोची।

एक दिन शिव और पार्वती भ्रमण के लिए बाहर निकले और जब वे वापस लौटे तो उन्होंने द्वार पर एक नन्हे शिशु को रोते हुए देखा। माता पार्वती की ममता जाग उठी। वह उस शिशु को उठाने लगी तभी शिव ने रोका और कहा कि उस शिशु को मत छुओ। पार्वती ने पूछा क्यों? शिव बोले यह कोई अच्छा शिशु नहीं है। सोचो यह यहां अचानक कैसे और कहां से आ गया? दूर तक कोई इसके माता पिता नजर नहीं आते। यह कोई बच्चा नहीं बल्कि मायावी लगता है।

लेकिन माता पार्वती नहीं मानी और वह बच्चे को उठाकर घर के अंदर ले गई। पार्वती ने बच्चे को चुप कराया और उसे दूध पिलाया। फिर वह बच्चे को वहां सुलाकर शिव के साथ नजदीक के एक गर्म झरने में स्नान करने के लिए चली गई। जब वे दोनों वापस लौटे तो उन्होंने देखा की घर का दरवाजा अंदर से बंद था।

पार्वती ने शिव से कहा कि अब हम क्या करें? शिव ने कहा कि यह तुम्हारा बालक है। मैं कुछ नहीं कर सकता। अच्छा होगा कि हम कोई नया ठिकाना ढूंढ लें, क्योंकि अब दरवाजा नहीं खुलने वाला है और मैं बलपूर्वक इस दरवाजे को नहीं खोलूंगा। कहते हैं कि शिव और पार्वती वह स्थान छोड़कर केदारनाथ चले गए और वह बालक जो भगवान विष्णु थे वहीं जमे रहे। इस तरह भगवान विष्णु ने जबरन बद्रीनाथ को अपना विश्राम स्थान बना लिया।

9.जब भगवान विष्णु ध्यानयोग में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु और उनका घर हिम में पूरी तरह डूबने लगा। यह देखकर माता लक्ष्मी का व्याकुल हो उठी। तब उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बेरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मी जी भगवान विष्णु

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *