असम विधानसभा ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने खुद ट्वीट करके दी। सरमा ने ट्वीट किया कि असम ने 2 घंटे की जुम्मा छुट्टी को समाप्त करके उत्पादकता को प्राथमिकता दी है और एक औपनिवेशिक प्रथा का अंत किया है। उन्होंने बताया कि यह प्रथा 1937 में मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला द्वारा शुरू की गई थी। इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए उन्होंने विधानसभा के स्पीकर बिस्वजीत दैमारी और विधायकों को धन्यवाद दिया।
इससे पहले, असम विधानसभा ने 1935 के मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को रद्द कर दिया और इसके स्थान पर नया अधिनियम पारित किया। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने घोषणा की कि राज्य बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी कानून लाएगा। फरवरी में, असम सरकार ने इस अधिनियम को खत्म करने की घोषणा की थी, क्योंकि इसमें नाबालिगों के विवाह की गुंजाइश छोड़ दी गई थी।
मार्च में, सरकार ने 1935 अधिनियम को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था, जिसके बाद असम में मुसलमानों के विवाह और तलाक के पंजीकरण को नियंत्रित करने वाला कोई कानून नहीं था। गुरुवार को विधानसभा ने असम निरसन विधेयक, 2024 को पारित किया और इसके साथ ही असम अनिवार्य मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण विधेयक, 2024 को भी मंजूरी दी।
हाल ही में, हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि वह किसी के भी पक्ष में नहीं होंगे और ‘मिया’ मुसलमानों को असम पर कब्जा करने नहीं देंगे। उन्होंने नगांव में 14 वर्षीय लड़की के बलात्कार की घटना के संदर्भ में राज्य की कानून व्यवस्था पर विपक्षी दलों द्वारा लाए गए स्थगन प्रस्ताव का जवाब देते हुए कहा कि जनसंख्या वृद्धि के बावजूद अपराध दर में वृद्धि नहीं हुई है।