पञ्च पर्व – दीपावली
एकमात्र दीपावली पर्व ही ऐसा है , जिसका आयोजन भिन्न-भिन्न ढंग से निरंतर पांच दिनों तक होता है। इसका आरंभ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ होता है और समापन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि में होता है।
पांच पर्व इस प्रकार हैं :–
१ – कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी – धन्वंतरि जयंती / धनतेरस
२ – कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी – नरक चतुर्दशी
३ – कार्तिक (कृष्ण-पक्ष) अमावस्या – दीपावली
४ – कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा – गोवर्धन पूजा
५ – कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया – भाई दूज।
कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी – धन्वंतरि जयंती
पांच पर्वों में सबसे पहले धन्वंतरि त्रयोदशी आता है।
जिस प्रकार संस्कृत शब्द “अग्नि ” का हिन्दी में तद्भव शब्द ‘ आग ‘ है , उसी प्रकार ” धन्वंतरि त्रयोदश ” का तद्भव शब्द ‘ धनतेरस ‘ है।
ऐसा माना जाता है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वंतरि समुद्र से स्वर्ण-कलश में अमृत लेकर प्रकट हुए थे। अतः इस दिन भगवान धनवंतरि जयंती मनाई जाती है।
भगवान धन्वंतरि भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से एक माने जाते हैं। वे आयुर्वेद जगत के प्रणेता तथा वैद्यक शास्त्र के देवता माने जाते हैं। श्री नरेंद्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2016 से भारत सरकार का आयुष मंत्रालय प्रतिवर्ष धन्वंतरि जयंती (धनतेरस के दिन) को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाता आ रहा है।
आइए ! भगवान धन्वंतरि को नमन करें –
।। ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृतकलशहस्ताय सर्वआमय विनाशाय त्रिलोकनाथाय श्रीमहाविष्णुवे नमः ।।
यम दीप
धनतेरस के सायंकाल में अपने गृहद्वार पर यम के निमित्त दीपदान करने का विधान है। इस दीप को यम-दीप के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे अकाल मृत्यु नहीं होती।
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।।
यम के निमित्त दीपदान करने के बाद ही बर्तनों / आभूषणों की खरीद को शुभ माना जाता है।
यम दीपक पर लोक-कथा
प्राचीन काल में हेमराज नामक एक राजा के पुत्र का जन्म हुआ। जब शिशु की छठी मनाई जा रही थी , तभी एक देवी प्रकट हुई और बोली – यह अपने विवाह के चौथे दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।
विधि विधान के अनुसार विवाह के ठीक चौथे दिन यम के दूत राजकुमार का प्राण-हरण करने आ पहुंचे और उसके प्राण को लेकर चल पड़े। उस समय राजमहल में हाहाकार मच गया। इस हृदय-विदारक दृश्य से द्रवित होकर यमदूत भी रोने लग गए।
एक दिन सभा में यमराज ने दूतों से पूछा कि जिसके तुम प्राण लेने जाते हो , क्या तुम्हारे मन में कभी यह विचार उठा कि इसे छोड़ देना चाहिए ? तो राजकुमार के प्राण लेकर जाने वाले यमदूत ने कहा कि एक घटना ऐसी अवश्य हुई है और यह कहकर उसने राजा हेमराज के पुत्र के प्राण-हरण की घटना सुना दी। इस दु:खद प्रसंग को सुनकर यमराज भी विचलित हो गए। तब दूत ने कहा – नाथ ! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है , जिससे अकाल मृत्यु से प्राणियों को छुटकारा मिल जाए।
इस पर यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन पूरे दिन का व्रत और यमुना में स्नान कर धनवंतरि और यम का पूजन-अर्चन अकालमृत्यु से रक्षा कर सकता है। यदि यह भी संभव न हो , तो कम से कम संध्या के समय घर के प्रवेशद्वार पर यम के नाम से एक दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। इससे भी अकाल मृत्यु और रोग से मुक्त जीवन प्राप्त किया जा सकता है।
इसके बाद से ही जनमानस में धनतेरस के दिन धनवंतरि के पूजन और प्रवेश द्वार पर यम-दीप प्रज्वलित करने की परंपरा प्रारंभ हुई , जो आज भी श्रद्धा और विश्वास के साथ हमारे लोक-जीवन में विद्यमान है l