You Must Grow
India Must Grow

NATIONAL THOUGHTS

A Web Portal Of Positive Journalism 

नवरात्रि के चतुर्थ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं*

Share This Post

सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥
श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपनी मन्द हंसी से अपने उदर से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारंण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण से भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। जब सृष्टि नहीं थी और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था तब इन्होंने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। यह सृष्टि की आदिस्वरूपा हैं और आदिशक्ति भी। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। कुष्मांडा देवी के शरीर की चमक भी सूर्य के समान ही है कोई और देवी देवता इनके तेज और प्रभाव की बराबरी नहीं कर सकतें। माता कुष्मांडा तेज की देवी है इन्ही के तेज और प्रभाव से दसों दिशाओं को प्रकाश मिलता है। कहते हैं की सारे ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में जो तेज है वो देवी कुष्मांडा की देन है।
श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं। इस दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है, अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।

*देवी कुष्मांडा पूजा विधि*

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को ‘अनाहत’ में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है। अतः इस दिन पवित्र मन से माँ के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए। माँ कूष्माण्डा देवी की पूजा से भक्त के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। माँ की भक्ति से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य की वृध्दि होती है। इनकी आठ भुजायें हैं इसीलिए इन्हें अष्टभुजा कहा जाता है। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिध्दियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। कूष्माण्डा देवी अल्पसेवा और अल्पभक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं। यदि साधक सच्चे मन से इनका शरणागत बन जाये तो उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो जाती है। देवी कुष्मांडा का वाहन सिंह है।
दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार देवी ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं. इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करे: पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे

*कुष्मांडा की मंत्र*

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

*माँ कूष्मांडा का उपासना मंत्र*

कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा

*कुष्मांडा की ध्यान*

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥ भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्। कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥ पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥ प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्। कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

*कुष्मांडा की स्तोत्र पाठ*

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्। जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्। चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्। परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

*कुष्मांडा की कवच*

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्। हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥ कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम। दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥ 4. कूष्मांडा : ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें कूष्मांड कहा जाने लगा। उदर से अंड तक वह अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए है, इसीलिए कूष्मांडा कहलाती है।

*देवी कुष्मांडा कथा*

दुर्गा सप्तशती के कवच में लिखा है
कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा।
इसका अर्थ है वह देवी जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है वह कूष्माण्डा हैं। देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं। जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय अंधकार का साम्राज्य था। देवी कुष्मांडा जिनका मुखमंड सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुई उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ। इस देवी का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं।
देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं अत: इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। देवी अपने इन हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा है। देवी के आठवें हाथ में बिजरंके (कमल फूल का बीज) का माला है है, यह माला भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि सिद्धि देने वाला है। देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार हैं। जो भक्त श्रद्धा पूर्वक इस देवी की उपासना दुर्गा पूजा के चौथे दिन करता है उसके सभी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *