नई दिल्ली (राजेश शार्म)- दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में भोपाल के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार नरेंद्र दीपक के काव्य-जीवन पर लिखी हुई पुस्तक ‘सदाबहार गीतकार- नरेंद्र दीपक’ का लोकार्पण एवं सम्मान समारोह में वरिष्ठ गीतकार बालस्वरूप राही ने कहे|
कार्यक्रम में सम्मिलित सभी अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम की शुरूआत की गई।
इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ गीतकार बालस्वरूप राही, प्रसिद्ध साहित्यकार एवं प्रख्यात पत्रकार नरेंद्र दीपक, वरिष्ठ गीतकार बी. एल. गौड़, प्रसिद्ध दोहाकार नरेश शांडिल्य, बाल साहित्यकार डॉ० शकुंतला कालरा, कवि ओम निश्चल, सम्मेलन की अध्यक्ष एवं वरिष्ठ गीतकार श्रीमती इंदिरा मोहन एवं सम्मेलन के महामंत्री प्रो० रवि शर्मा ‘मधुप’ उपस्थित रहे।
पत्रकार नरेंद्र दीपक के काव्य-जीवन पर लिखी पुस्तक ‘सदाबहार गीतकार-नरेंद्र दीपक‘ का लोकार्पण
कार्यक्रम का प्रारंभ सम्मेलन की अध्यक्ष श्रीमती इंदिरा मोहन द्वारा स्वागत कथन से किया गया। उन्होंने हिंदी के उत्थान में दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वार अतीत में दिए गए योगदान को बताया।
कार्यक्रम के केंद्र बिंदु भोपाल से पधारे हुए साहित्यकार नरेंद्र दीपक का स्वागत माला पहनाकर, शॉल ओढ़ाकर और प्रशस्ति पत्र देकर किया गया। साथ ही उनके काव्य-जीवन पर लिखी हुई पुस्तक ‘सदाबहार गीतकार नरेंद्र दीपक’ का लोकार्पण मंच पर उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के संचालक हिंदी विद्वान प्रो० रवि शर्मा ‘मधुप’ ने साहित्यकार नरेंद्र दीपक के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता बी. एल. गौड़ ने कहा कि आप एक अच्छे और मँजे हुए गीतकार हैं मैं आपके स्वस्थ और सक्रिय जीवन के लिए शुभकामनाएँ देता हूँ।”
देश-विदेश में कविता के क्षेत्र में प्रसिद्ध डॉ० कीर्ति काले ने अनुभव बताते हुए कहा, “एक गंभीर और संवेदनशील कवि के रूप में मैं इनका नाम ही सबसे आगे रखती हूँ।” उन्होंने उनके गीत की पंक्ति का उदाहरण देते हुए बताया कि-
मेरे पथ में फूल बिछा कर, दूर खड़े मुस्काने वाले।
दाता ने संबंधी पूछे, पहला नाम तुम्हारा लूँगा।।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध गीतकार बालस्वरूप राही ने कहाकि वास्तव में आजकल पत्रिका निकालना बहुत कठिन काम है, फिर भी ये लगे हुए हैं; इसके लिए मैं इन्हें बधाई देता हूँ।” इस दौरान राही ने अपना एक मुक्तक भी प्रस्तुत किया कि –
हसरतों की ज़हर बुझी लौ में, मोम-सा दिल जला दिया मैंने।
कौन बिजली की धमकियाँ सहता, आशियाँ खुद जला दिया मैंने।।
अपनी ग़ज़ल के अशआर पेश करते हुए उन्होंने कहा –
इतना बुरा तो तेरा भी अंजाम नहीं है। सूरज जो सवेरे था वही शाम नहीं है।।
पहचान अगर बन न सकी तेरी, तो क्या ग़म। कितने ही सितारों का कोई नाम नहीं है।।
कार्यक्रम के समापन पर दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रबंध मंत्री और प्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य अनमोल ने मंच पर पधारे हुए सभी अतिथियों, सम्मेलन के पदाधिकारियों और आगंतुक सभी हिंदी प्रेमियों का धन्यवाद व्यक्त किया l