नई दिल्ली,(नेशनल थॉट्स ) : इस साल, 17 नवंबर को शुरू हुए छठ पर्व के महोत्सव में आज, 18 नवंबर को व्रती खरना ग्रहण करेंगे। छठ पर्व का व्रत खरना ग्रहण करने से ही आरंभ होता है और इसके बाद अगले 36 घंटे तक व्रती निर्जला उपवास का पालन करते हैं। आइए जानते हैं कि यह किस प्रकार से व्रतीयों के लिए महत्वपूर्ण है।
खरना का महत्व
छठ पर्व में नहाय खाय की तरह खरना का भी विशेष महत्व होता है। खरना के दिन व्रत कर रही महिलाएं सबसे पहले नए मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाती हैं। इसके बाद इस खीर का भोग छठी मैया को लगाया जाता है। फिर इस खीर को व्रत करने वाली महिलाएं प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं और इसी के बाद से निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
छठ पर्व में नहाय खाय की तरह खरना का भी विशेष महत्व होता है। खरना के दिन व्रत कर रही महिलाएं सबसे पहले नए मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाती हैं। इसके बाद इस खीर का भोग छठी मैया को लगाया जाता है। फिर इस खीर को व्रत करने वाली महिलाएं प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं और इसी के बाद से निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
खरना का मुहूर्त
छठ पूजा के दौरान सूर्योदय और सूर्यास्त का समय बहुत ही जरूरी माना जाता है। ऐसे में खरना के दिन सूर्योदय सुबह 06 बजकर 46 मिनट पर होगा और शाम 05 बजकर 26 मिनट पर सूर्यास्त हो जाएगा।
इसलिए बंद कमरे में किया जाता है खरना
माना जाता है कि खरना के दौरान छठ व्रत कर रहे साधक के व्रत में किसी प्रकार की बाधा नहीं आनी चाहिए और न ही किसी प्रकार का शोर होना चाहिए। यही कारण है कि खरना एक बंद कमरे में करने की परंपरा चली आ रही है।
माना जाता है कि खरना के दौरान छठ व्रत कर रहे साधक के व्रत में किसी प्रकार की बाधा नहीं आनी चाहिए और न ही किसी प्रकार का शोर होना चाहिए। यही कारण है कि खरना एक बंद कमरे में करने की परंपरा चली आ रही है।