प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल 21 और 22 अगस्त को एक ऐतिहासिक यात्रा पर पोलैंड रवाना हुए। पिछले 45 वर्षों में यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली पोलैंड यात्रा है, जो दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर हो रही है। 1954 में स्थापित हुए भारत और पोलैंड के राजनयिक संबंधों के बाद, 1957 में वारसॉ में भारतीय दूतावास और 1954 में नई दिल्ली में पोलिश दूतावास की स्थापना की गई। इन संबंधों का इतिहास बहुत पुराना और दिलचस्प है, जिसमें एक भारतीय महाराजा की कहानी भी शामिल है, जिनकी आज भी पोलैंड के घर-घर में पूजा की जाती है।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, हज़ारों पोलिश नागरिकों ने अपना देश छोड़कर शरण ली, और भारत उन पहले देशों में से एक था जिसने इन शरणार्थियों की मदद की। इस मानवीय कार्य का नेतृत्व ‘अच्छे महाराजा’ के रूप में जाने जाने वाले जाम साहब दिग्विजय सिंह ने किया, जिन्होंने कई पोलिश अनाथ बच्चों को अपने राज्य में शरण दी। 1940 के दशक में हिटलर द्वारा पोलैंड पर आक्रमण के समय, कई पोलिश नागरिक, विशेष रूप से महिलाएं और बच्चे, शरण के लिए रवाना हुए। जाम साहब ने गुजरात के नवानगर (जिसे आज जामनगर के नाम से जाना जाता है) में बालाचडी नामक स्थान पर 1,000 से अधिक पोलिश शरणार्थियों को शरण दी, जिनमें ज्यादातर बच्चे थे। उन्होंने कई वर्षों तक इन बच्चों का ध्यान रखा, और उनमें से एक बच्चा आगे चलकर पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना।
आज, पोलैंड में 8 स्कूलों का नाम जाम साहब के नाम पर रखा गया है, और कई स्थानों पर महाराजा की याद में सम्मानित किया गया है। पोलैंड में भारतीय समुदाय की संख्या लगभग 25,000 है, जिसमें लगभग 5,000 छात्र भी शामिल हैं। हर जगह लिखा है- “दयावान महाराजा की श्रद्धांजलि में कृतज्ञ पोलैंड राष्ट्र।”