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आम सहमति नहीं बन पाई, आजादी के बाद पहली बार होगा स्पीकर का चुनाव, ओम बिरला के खिलाफ कांग्रेस ने के सुरेश को उतारा

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सत्तारूढ़ भाजपा नीत राजग और विपक्ष के बीच आम सहमति नहीं बन पाने के बाद पहली बार लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा। एनडीए ने जहां बीजेपी सांसद ओम बिरला को अपना उम्मीदवार चुना है, वहीं विपक्ष ने दिग्गज कांग्रेस नेता के सुरेश को मैदान में उतारने का फैसला किया है। सरकार ने विपक्षी दल इंडिया गेट के यह कहने के बाद कि वह अपने विकल्पों पर विचार कर रहा है, लोकसभा अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पर आम सहमति बनाने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू को तैनात किया था।

आम चुनाव में ओम बिरला ने कोटा लोकसभा सीट पर 41,000 से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी। इससे पहले, सूत्रों ने कहा था कि अगर लोकसभा अध्यक्ष के लिए एनडीए के उम्मीदवार पर आम सहमति बनती है तो उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के पास जा सकता है। भाजपा ने 2014 में अन्नाद्रमुक के एम थंबीदुरई को उपाध्यक्ष नियुक्त किया था। यह पद 2019 से खाली है। विपक्ष लोकसभा अध्यक्ष के पद के लिए उम्मीदवार उतारकर चुनाव की स्थिति उत्पन्न करा चुका है। यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार होगा, क्योंकि पीठासीन अधिकारी का चयन हमेशा आम सहमति से होता रहा है।

स्वतंत्रता से पहले सांसद को केंद्रीय विधानसभा कहा जाता था और इसके अध्यक्ष पद के लिये पहली बार चुनाव 24 अगस्त 1925 में हुआ था जब स्वराजवादी पार्टी के उम्मीदवार विट्ठलभाई जे. पटेल ने टी. रंगाचारियर के खिलाफ यह चुनाव जीता था। लोकसभा में अपनी बढ़ी हुई ताकत से उत्साहित विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ अब आक्रामक तरीके से उपाध्यक्ष के पद की मांग कर रहा है, जो परंपरागत रूप से विपक्षी दल के सदस्य के पास होता है। केंद्रीय विधानसभा के अध्यक्ष पद के लिए अंतिम मुकाबला 24 जनवरी, 1946 को हुआ था, जब कांग्रेस नेता जी.वी. मावलंकर ने कावसजी जहांगीर के खिलाफ तीन मतों के अंतर से चुनाव जीता था। मावलंकर को 66 मत मिले थे, जबकि जहांगीर को 63 मत मिले थे।

इसके बाद मावलंकर को संविधान सभा और अंतरिम संसद का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जो 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद अस्तित्व में आई। मावलंकर 17 अप्रैल, 1952 तक अंतरिम संसद के अध्यक्ष बने रहे, जब पहले आम चुनावों के बाद लोकसभा और राज्यसभा का गठन किया गया। स्वतंत्रता के बाद से, लोकसभा अध्यक्षों का चयन सर्वसम्मति से किया जाता रहा है, तथा केवल एम ए अयंगर, जी एस ढिल्लों, बलराम जाखड़ और जी एम सी बालयोगी ही बाद की लोकसभाओं में प्रतिष्ठित पदों पर पुनः निर्वाचित हुए हैं। लोकसभा के पहले उपाध्यक्ष अयंगर वर्ष 1956 में मावलंकर की मृत्यु के बाद अध्यक्ष चुने गये थे। उन्होंने 1957 के आम चुनावों में जीत हासिल की और उन्हें दूसरी लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था। ढिल्लों को 1969 में वर्तमान अध्यक्ष एन संजीव रेड्डी के इस्तीफे के बाद चौथी लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था। ढिल्लों को 1971 में पांचवीं लोकसभा का अध्यक्ष भी चुना गया और वे 1 दिसंबर 1975 तक इस पद पर बने रहे। उन्होंने आपातकाल के दौरान यह पद छोड़ दिया था। जाखड़ सातवीं और आठवीं लोकसभा के अध्यक्ष रहे और उन्हें दो पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र पीठासीन अधिकारी होने का गौरव प्राप्त है। बालयोगी को 12वीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया, जिसका कार्यकाल 19 महीने का था। उन्हें 22 अक्टूबर 1999 को 13वीं लोकसभा का अध्यक्ष भी चुना गया। बालयोगी की 3 मार्च 2002 को एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।

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