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Delhi assembly elections : अंबेडकर की विरासत पर राजनीतिक टकराव का असर

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच, संसद में संविधान पर बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह द्वारा डॉ. बीआर अंबेडकर के कथित अनादर ने राजधानी की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। यह मुद्दा दिल्ली की तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियों – आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP), और कांग्रेस – के लिए चुनावी रणनीति का केंद्रीय विषय बन गया है। खासकर दिल्ली की 12 अनुसूचित जाति आरक्षित सीटों पर अंबेडकर की विरासत को लेकर आरोप-प्रत्यारोप से चुनावी चर्चा प्रभावित होने की संभावना है।

दलित वोटों पर भाजपा और कांग्रेस की नजर

भारतीय जनता पार्टी (BJP), जो दिल्ली में सत्ता पाने के लिए संघर्ष कर रही है, दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए सक्रिय रूप से कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। भाजपा को यह महसूस हो रहा है कि डॉ. अंबेडकर की विरासत का सम्मान करने का दावा कर वह इस महत्वपूर्ण समुदाय का समर्थन हासिल कर सकती है। कांग्रेस और AAP भी इस मुद्दे पर अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे दलित वोटों को अपनी ओर खींच सकें।

दिल्ली में दलित मतदाताओं की भूमिका

दिल्ली की लगभग एक-छठी आबादी दलितों की है, और यह समुदाय राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उत्तर पश्चिमी दिल्ली के सुल्तानपुरी विधानसभा क्षेत्र में 44 प्रतिशत दलित मतदाता हैं, जबकि करोल बाग में यह आंकड़ा 41 प्रतिशत है। दिल्ली के अन्य हिस्सों में भी दलितों की अच्छी-खासी उपस्थिति है, जो राजनीति में बदलाव लाने में सक्षम है।

डॉ. अंबेडकर का प्रभाव और जाटव समुदाय

डॉ. बीआर अंबेडकर सभी दलित समुदायों में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं, खासकर जाटव समुदाय में, जो दिल्ली के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रमुखता से मौजूद है। जाटव समुदाय के लिए अंबेडकर का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और इस समुदाय के बीच भाजपा के लिए कोई भी आलोचना नुकसानदेह हो सकती है।

दिल्ली विधानसभा चुनावों में दलित वोटों के रुझान

पिछले चार विधानसभा चुनावों में दलित वोटों के रुझान में महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है। 2008 में, कांग्रेस ने 12 में से 9 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा ने केवल दो सीटें जीतीं। लेकिन, 2013 में AAP का उदय हुआ और उसने इन 12 सीटों में से 9 सीटें जीत लीं। 2015 और 2020 के चुनावों में AAP ने सभी 12 सीटों पर कब्जा किया, जो दलित मतदाताओं के बीच उसकी बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है।

भाजपा की चुनावी रणनीति और दलित वोटों का महत्व

भाजपा 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP को चुनौती देने के लिए दलित वोटों पर जोर दे रही है। भाजपा दलितों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई उपायों का अनुसरण कर रही है। वहीं, कांग्रेस भी दलितों का समर्थन पाने के लिए संविधान के महत्व पर जोर दे रही है, ताकि वह AAP के मजबूत आधार को कमजोर कर सके।

हरियाणा विधानसभा चुनाव का प्रभाव

2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में दलित वोटों का रुख भाजपा की ओर हुआ, जिससे भाजपा को राज्य में तीसरी बार सत्ता में आने में मदद मिली। अब भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसी जीत को दोहराने की कोशिश कर रही है, ताकि वह दलितों के बीच अपनी स्थिति मजबूत कर सके।

2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में दलित मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं। भाजपा, कांग्रेस और AAP सभी अपनी चुनावी रणनीतियों को इस समुदाय के आधार पर आकार देंगे, और यह चुनाव दिल्ली की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।

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