धन्वंतरि जयंती मनाए जाने के संदर्भ में ये घटना आती है कि एक बार देवराज इंद्र के अभद्र आचरण के परिणामस्वरूप महर्षि दुर्वासा ने तीनों लोकों को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया था जिसके कारण अष्टलक्ष्मी अपने लोक चली गईं। पुनः तीनों लोकों में श्री की स्थापना के लिए व्याकुल देवता त्रिदेवों के पास गए और इस संकट के निवारण का उपाय पूछा, शिवजी ने देवताओं को समुद्र मंथन का सुझाव दिया जिसे देवताओं और असुरों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागों के राजा वासुकी को मथानी के लिए रस्सी बनाया गया। वासुकी के मुख की ओर दैत्य और पूंछ की ओर देवताओं को किया गया और समुद्र मंथन शुरू हुआ। समुद्र मंथन से चौदह प्रमुख रत्नों की उत्पत्ति हुई जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए जो अपने हाथों में अमृत कलश लिए हुए थे। भगवान धन्वंतरि विष्णु जी का ही अंशावतार हैं। चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरि के एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ, दूसरे में औषधि कलश, तीसरे में जड़ी बूटी और चौथे में शंख विद्यमान है।
भगवान विष्णु ने इन्हें देवताओं का वैद्य और औषधियों का स्वामी नियुक्त किया। इन्हीं के वरदान स्वरूप सभी वृक्षों वनस्पतियों में रोगनाशक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। समुद्र मंथन की अवधि के मध्य शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि और अमावस्या को मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ।
धन्वन्तरि ने ही जनकल्याण के लिए अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इन्हीं के वंश में शल्य चिकित्सा के जनक दिवोदास हुए। महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत उनके शिष्य हुए जिन्होंने आयुर्वेद के महानतम ग्रंथ सुश्रुत संहिता की रचना की। ये प्राणियों पर कृपा कर उन्हें आरोग्य प्रदान करते हैं। इसलिए धनतेरस पर केवल धन प्राप्ति की कामना के लिए पूजा न करें, स्वास्थ्य धन प्राप्ति के लिए धन्वंतरि भगवान की पूजा करें।
धनतेरस पर खरीदारी का महत्व
समुद्र मंथन के दौरान जब धन्वंतरि जी प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में कलश था यही कारण है कि धनतेरस पर बर्तन खरीदने की भी परंपरा है। इस दिन सोना, चांदी, पीतल एवं तांबे के बर्तन विशेष रूप से कलश खरीदना काफी शुभ माना गया है।
धनतेरस के दिन खरीदे गए बर्तनों में लोग दीवाली के बाद अन्न आदि भरकर रखते हैं। इसके अलावा लोग धनिया के बीज खरीदकर भी इन बर्तनों में रखते हैं। मान्यता है कि इससे सदैव अन्न और धन के भंडारे भरे रहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन खरीदी गई चीज में तेरह गुणा वृद्धि होती है इसलिए धनतेरस के दिन लोग पीतल, तांबे के पात्र खरीदने के साथ ही सोने, चांदी की वस्तुएं भी खरीदते हैं।