इस बार रमा एकादशी पर बन रहे हैं दुर्लभ संयोग, सही मुहूर्त में पूजा करने से मिल सकता है कई गुना ज्यादा फल, जानें महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रमा एकादशी का व्रत रखने से मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं साथ ही सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं रमा एकादशी की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में।
हिंदू धर्म में कार्तिक मास में आने वाली एकादशी तिथि का खास महत्व होता है। रमा एकादशी कार्तिक महीने की पहली एकादशी होती है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि रमा एकादशी का व्रत रखने से हमारे जीवन में सुख-समृद्धि आती है। वहीं इस बार रमा एकादशी पर कई शुभ योग बन रहे हैं, जिससे व्रत का फल दोगुना हो जाएगा। ऐसे में आइए जानते हैं कार्तिक मास की रमा एकादशी कब है साथ ही जानिए
रमा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में।
रमा एकादशी 2024 तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 27 अक्टूबर 2024 को सुबह 05 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 28 अक्टूबर 2024 को सुबह 07 बजकर 51 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में व्रत 27 अक्टूबर 2024 को रखा जाएगा।
रमा एकादशी 2024 पूजा मुहूर्त
रमा एकादशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 30 मिनट है। इस दिन राहुकाल सुबह 7 बजकर 54 मिनट से सुबह 9 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।
रमा एकादशी 2024 शुभ योग
इस बार की रमा एकादशी बेहद खास है, क्योंकि इस दिन हरिवास का संयोग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो जब एकादशी तिथि दो दिन उदया तिथि में होती है तब यह योग बनता है। इस बार ऐसा ही संयोग है कि 27 अक्टूबर को उदया तिथि में एकादशी शुरू होगी और अगले दिन भी उदया काल में एकादशी तिथि रहेगी। ऐसे में जो भक्त हरियासर में व्रत रखेंगे उन्हें रमा एकादशी का अनंत फल मिलेगा।
रमा एकादशी 2024 पूजा विधि
रमा एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें। उसका बाद मंदिर की साफ-सफाई करें। अब भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद भगवान श्री हरि विष्णु का जलाभिषेक करें और पंचामृत से उन्हें स्नान कराएं। इसके बाद विष्णु जी को पीले रंग के वस्त्र और पीले फूल अर्पित करें। अब घी का दीपक जलाकर पूजा करें और व्रत का संकल्प लें। पूजा के बाद रमा एकादशी व्रत कथा का पाठ करें। फिर भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और आखिरी में भगवान विष्णु की आरती करें।
रमा एकादशी 2024 पारण का समय
ड्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल रमा एकादशी का व्रत 28 अक्टूबर 2024 को रखा जाएगा। इसका पारण अगले दिन यानी 29 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 23 मिनट से 8 बजकर 35 मिनट के बीच किया जा सकता है।
रमा एकादशी का महत्व
रमा एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी में से एक मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे मन से रमा एकादशी का व्रत करता है उसे बैकुंठ की प्राप्ति होती है। साथ ही इससे सभी तरह के पापों और समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
रमा एकादशी व्रत कथा
रमा एकादशी को लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं। एक समय की बात है एक मुचकुंद नाम का राजा था। उसकी पुत्री का नाम चंद्रभागा था, जिसका विवाह चंद्रसेन के बेटे शोभन से हुआ। एक दिन शोभन ससुराल आया। रमा एकादशी से एक दिन पहले राजा मुचुकुंद ने पूरे नगर में यह घोषणा कर दी कि कोई भी व्यक्ति रमा एकादशी के दिन भोजन ग्रहण नहीं करेगा, जिसे सुनकर उनका दामाद परेशान हो गया है, तब उसने अपनी पत्नी से कहा कि ”वह बिना भोजन के जीवित नहीं रह सकता है।”
यह सुनने के बाद उसकी पत्नी ने कहा कि ”आप कहीं और चले जाइए। यदि यहां रहेंगे तो आपको इस व्रत नियम का पालन करना ही होगा।” तब शोभन ने कहा कि ”जो भाग्य में होगा वो देखा जाएगा और उसने रमा एकादशी का व्रत रखा, लेकिन उसे बहुत तेज से भूख लग गई, जिससे वह व्याकुल हो उठा। वहीं, जब रात्रि जागरण का समय आया तो वह बहुत दुखी हुआ और सुबह तक उसके प्राण निकल गए। उसका अंतिम संस्कार हुआ और चंद्रभागा मायके में ही रहने लगी।
रमा एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर सुंदर देवघर प्राप्त हुआ। मुचुकुंद नगर का एक ब्राह्मण एक दिन शोभन के नगर में गया, जहां पर उसकी मुलाकात उसकी पत्नी से हुई, जिसने पूरा हाल बताया। उसने पूछा कि ”आपको ऐसा नगर कैसे मिला?” शोभन ने उसे रमा एकादशी के पुण्य प्रभाव के बारे में बताया। उसने कहा कि ”यह नगर अस्थिर है, आप चंद्रभागा से इसके बारे में बताना”।
वह ब्राह्मण अपने घर गया और अगले दिन चंद्रभागा को पूरी बात बताई। चंद्रभागा उस ब्राह्मण के साथ शोभन के नगर के लिए निकल पड़ी। रास्ते में मंदराचल पर्वत के पास वामदेव ऋषि के आश्रम में वे दोनों गए। वहां कामदेव ने चंद्रभागा का अभिषेक किया। मंत्र और एकादशी व्रत के प्रभाव से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और उसको दिव्य गति मिली।
उसके बाद वह अपने पति शोभन के पास गई। उसने चंद्रभागा को अपनी बाईं ओर बिठाया। उसने अपने पति को एकादशी व्रत का पुण्य प्रदान किया, जिससे उसका नगर स्थिर हो गया। उसने बताया कि ”व्रत के पुण्य प्रभाव से यह नगर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा।” उसके बाद दोनों सुखपूर्वक उस नगर में रहने लगे।