राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज संसद की संयुक्त बैठक में अपने संबोधन में कहा कि 1975 में लगाया गया आपातकाल भारत के संविधान पर सबसे बड़ा हमला और धब्बा था। इस साल आम चुनाव में नई लोकसभा चुने जाने के बाद संसद में यह उनका पहला संबोधन है। राष्ट्रपति ने सत्ता पक्ष की जय-जयकार और विपक्ष के विरोध के बीच कहा, “1975 में आपातकाल भारत के संविधान पर सबसे बड़ा हमला और उस पर एक धब्बा था।”
यह बयान आपातकाल पर सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक की पृष्ठभूमि में आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रियों ने इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल की भयावहता पर जोर दिया है, जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों में “अघोषित आपातकाल” लागू है।
राष्ट्रपति ने अपने बयान में कहा कि आने वाले महीनों में भारत लोकतंत्र के रूप में 75 वर्ष पूरे करने जा रहा है। भारत के संविधान ने पिछले दशकों में हर चुनौती और बाधा का सामना किया है। संविधान लागू होने के बाद भी इस पर कई बार हमले हुए हैं। उन्होंने कहा कि सबसे काला अध्याय 25 जून 1975 को आपातकाल के दौरान संविधान पर सीधा हमला था, जब पूरा देश निराशा की चीखों से गूंज उठा था।
हालांकि, भारत ने इसे असंवैधानिक दबावों पर विजय प्राप्त की क्योंकि भारत के मूल मूल्य हमेशा लोकतंत्र की परंपराओं में निहित रहे हैं। उन्होंने कहा कि आपातकाल संविधान पर सीधे हमले का सबसे बड़ा और काला अध्याय था।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, “मेरी सरकार ने CAA कानून के तहत शरणार्थियों को नागरिकता देना शुरू कर दिया है। इससे बंटवारे से पीड़ित अनेक परिवारों के लिए सम्मान का जीवन जीना तय हुआ है। जिन परिवारों को CAA के तहत नागरिकता मिली है, मैं उनके बेहतर भविष्य की कामना करती हूं।”