नई दिल्ली – किसी अपराधी व असामाजिक तत्व को जब सजा दी जाती है तो उसे जेल के अंदर भेजा जाता है और इसके साथ ही उसे जेल के कानून के मुताबिक तमाम सामाजिक सुख-सुविधाओं से दूर रखा जाता है। इसके लिए जेल के बहुत ही सख्त कानून होते हैं।
सान्यतः सजा पाए कैदी को जेल के कपड़े पहनने होते हैं, वहीं का खान खाना होता, कानून के अनुसार वहां के काम करने होते हैं इसके साथ ही उन्हें प्रतिबंधित चीजों से दूर रखा जाता है। जैसे मोबाईल, चाकू, हथियार , पेनड्राईव, पेचकस,पलास समेत अन्य कोई समान उसे अपने पास या बैरेक में रखने की मनाही होती है।
क्योंकि इन सबके माध्यम से ये अपराधी अन्य अपराधियों को हानी पहुंचा सकते हैं, जेल में रहते हुए अपने लोगों संपर्क कर बाहर अव्यवस्था फैला सकते हैं, गवाह को डरा सकते हैं इसी प्रकार की अन्य किसी भी असमाजिक गतिविधियों को अंजाम दे कर कानून व्यवस्था को बिगाड़ सकते हैं। इसी लिए इनके लिए जेल में सख्त पहरा होता है, 24 घंटे इन पर गहरी नजर रखी जाती है। तय समय अनुसार ही इन्हें खाने, सोने और खेलने व जेल के काम करनी की अनुमती है।
अब सवाल यह है कि इतने सख्त कानूनों, निगरानी व पहरेदारी के बावजूद जेल में बंद इन लोगों के पास ये प्रतिबंधित सामान कैसे पहुंचता है, जेल प्रशासन पर यह सब से बड़ प्रश्न चिन्ह है। जेलों में बीते दिनों डीजी जेल संजय बेनीवाल ने जेल मुख्यालय में विशेष सतर्कता दल का गठन किया था। इस दल ने 18 दिसंबर, 2022 को तमिलनाडु के विशेष पुलिस बल के साथ मिलकर मंडोली जेल में छापामारी की थी। इस छापेमारी के दौरान आठ मोबाइल फोन और 8 चाकू बरामद हुए।
छापामारी में इस प्रकार के प्रतिबंधित मोबाइल फोन और 8 चाकू बरामद होना दर्शाता है कि जेलों के अंदर भ्रष्टाचार किस सीमा तक फैला है, क्योंकि बिना अधिकारियों की मिली भगत के इतने मोबाईल और चाकू मिलना आसान नहीं, क्योकि अधिकारियों इशारे के बिना जहां कोई पत्ता तक ना हिलता हो वहां इतना कुछ मिलजाना सामान्य आदमी की समझ से परे है। क्या कुछ अधिकारियों को सस्पेंड करने और तबादले कर देने से यह व्यवस्था सुधर जाएगी ?