*गोपाष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए*
गोपाष्टमी के दिन प्रात: काल में गौओं को स्नान आदि कराया जाता है तथा इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है. प्रात:काल में ही धूप-दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड़, जलेबी, वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है. इस दिन कई व्यक्ति ग्वालों को भी उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करते हैं।
गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गौ संवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है. गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं. गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विद्वान पंडितों द्वारा संपन्न की जाती है. बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है. सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ रक्षा व गौ संवर्धन का संकल्प करते हैं।
शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है. इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष कि अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए. इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऐसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं. गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए. ऐसा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है।
गोपाष्टमी की पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था बालक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं.
गोपाष्टमी के अवसर पर गौशाला व गाय पालकों के यहां जाकर गायों की पूजा अर्चना कि जाती है इसके लिए दीपक, गुड़, केला, लडडू, फूल माला, गंगाजल इत्यादि वस्तुओं से इनकी पूजा की जाती है. महिलाएं गऊओं से पहले श्री कृष्ण की पूजा कर गऊओं को तिलक लगाती हैं. गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
गोपाष्टमी पर श्री कृष्ण पूजन
गोपाष्टमी पर गऊओं की पूजा भगवान श्री कृष्ण को बेहद प्रिय है तथा इनमें सभी देवताओं का वास माना जाता है. कई स्थानों पर गोपाष्टमी के अवसर पर गायों की उपस्थिति में प्रभातफेरी सत्संग संपन्न होते हैं. गोपाष्टमी पर्व के उपलक्ष्य में जगह-जगह अन्नकूट भंडारे का आयोजन किया जाता है. भंडारे में श्रद्धालुओं ने अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करते हैं. वहीं गोपाष्टमी पर्व की पूर्व संध्या पर शहर के कई मंदिरों में सत्संग-भजन का आयोजन भी किया जाता है. मंदिर में गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में रात्रि कीर्तन में श्रद्धालुओं ने भक्ति रचनाओं का रसपान करते हैं. इस मौके पर प्रवचन एवं भजन संध्या में उपस्थित श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.गो सेवा से जीवन धन्य हो जाता है तथा मनुष्य सदैव सुखी रहता है।
गौ माता का शास्त्र पुराणों में महात्मय
स्वप्न में गौ अथवा वृषभ के दर्शन से कल्याण लाभ एवं व्याधि नाश होता है । इसी प्रकार स्वप्न में गौ के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना पाया है । स्वप्न में गौ का घर में बयाना, वृषभ की सवारी करना, तालाब के बीच में घृत मिश्रित खीर का भोजन ही उत्तम माना गया है । घी सहित खीर का भोजन तो राज्य प्राप्ति का सूचक माना गया है ।
इसी प्रकार स्वप्न में ताजे दुहे हुए फोटो सहित दुग्ध का पान करने वाले को अनेक लोगों की तथा दही के देखने से प्रसन्नता की प्राप्ति होती है । जो वृषभ से युक्त रथ पर स्वप्न में अकेला सवार होता है और उसी अवस्था जाग जाता है, उसे शीघ्र धन मिलता है । स्वप्न में दही मिलाने से धनकी, घी मिलाने से यश की और दही खाने से भी यश की प्राप्ति निश्चित है ।
यात्रा आरम्भ करते समय दही और दूध का दिखना शुभ शकुन माना गया है । स्वप्न में दही भात का भोजन करने से कार्य सिद्धि होती है तथा बैल पर चढ़ने से द्रव्य लाभ होता है एवं व्याधि से छुटकारा मिलता है । इसी प्रकार स्वप्रेम वृषभ अथवा गौ का दर्शन करने से कुटुम्ब की वृद्धि होती है । स्वप्न में सभी काली वस्तुओं का दर्शन निन्द्य माना गया है, केवल कृष्णा गौर का दर्शन शुभ होता है । (स्वप्न में दर्शन का फल, संतो के श्री मुख से सुना हुआ)
वृषभो को जगत का पिता समझना चाहिए और गौएं संसार की माता हैं । उनकी पूजा करने से सम्पूर्ण पितरों और देवताओं की पूजा हो जाती है । जिनके गोबर से लीपने पर सभा भवन, हौंसले, घर और देव मंदिर भी शुद्ध हो जाते हैं, उन गौओ से बढ़कर और कौन प्राणी हो सकता है ?जो मनुष्य एक साल तक स्वयं भोजन करने के पहले प्रतिदिन दूसरे की गाय को मुट्ठी भर घास खिलाया करता है, उसको प्रत्येक समय गौ की सेवा करने का फल प्राप्त होता है ।(महाभारत, आश्वमेधिक पर्व, वैष्णव धर्म )
• देवता, ब्राह्मण, गो, साधु और साध्वी स्त्रीयोंके बलपर यह सारा संसार टिका हुआ है, इसीसे वे परम पूजनीय हैं । आए जिस स्थान पर जल पीती हैं, वह स्थान तीर्थ है । गंगा आदि पवित्र नदियाँ गोस्वरूपा ही हैं ।
जहा जिस मार्ग से गो माता जलराशि को लांघती हुई नदी आदि को पार करती है,वहां गंगा, यमुना, सिंधु, सरस्वती आदि नदियाँ या तीर्थ निश्चित रूप से विद्यमान रहते है।
(विष्णुधर्मोत्तर पुराण . द्वी.खं ४२। ४९-५८)
• हे ब्राह्मण ! गाय के खुर से उत्पन्न धूलि समस्त पापों को नष्ट कर देने वाली है । यह धूलि चाहे तीर्थ की हो चाहे मगध कीकट आदि निकृष्ट देशों को ही क्यो न हो । इसमें विचार अथवा संदेह करने की कोई आवश्यकता नहीं । इतना ही नहीं वह सब प्रकार की मङ्गलकारिणी, पवित्र करनेवाली और दुख दरिद्रता रूप लक्ष्मी को नष्ट करने वाली है ।
गायो के निवास करनेसे वहाँक्री पृथिवी भी शुद्ध हो जाती है । जहां गायें बैठती हैं वह स्थान, वह घर सर्वथा पवित्र हो जाता है । वहां कोई दोष नहीं रहता । उनके नि: श्वास