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Gyanvapi Case : ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की

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नई दिल्ली,(नेशनल थॉट्स ) : ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जो मंदिर समर्थकों के पक्ष में है। हाईकोर्ट ने यह घोषणा की है कि ज्ञानवापी मंदिर के स्वामित्व संबंधित सिविल वाद को पोषणीय मानता है और इसे प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत बाधित नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने इस प्रकरण में सुनवाई की है।


कोर्ट ने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की सभी याचिकाएं खारिज की हैं और सर्वे रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करने के साथ ही सर्वे जारी रखने की छूट दी गई है। इस निर्णय से ज्ञानवापी स्थित स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर नाम मंदिर के जीर्णोद्धार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

रिपोर्ट के आधार पर निकल सकेगा हल
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व विवाद का हल निकल सकेगा। करोड़ों हिंदुओं की आस्था जीवंत हो उठेगी। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने सिविल वाद की पोषणीयता पर मुस्लिम पक्ष की आपत्ति आधार हीन करार देते हुए कहा कि परिसर का सर्वे कराने के आदेश में कोई कानूनी खामी नहीं है। कोर्ट ने सभी अंतरिम आदेश भी समाप्त कर दिए हैं।
 

हाई कोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष ने फैसले को बताया ऐतिहासिक
ज्ञानवापी प्रकरण में इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह ने कहा, “यह फैसला ऐतिहासिक फैसला है क्योंकि सभी पक्षों को यह कहा गया है कि मामले को 6 महीने में निस्तारित किया जाए और याचिकाओं को खारिज किया है अगर एक पक्ष पीड़ित है तो उसके लिए ऊपर की अदालत खुली है।
 

वाराणसी में जिला अदालत 32 साल पहले वर्ष 1991 में दाखिल किए गए सिविल वाद  के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया कमेटी वाराणसी तथा सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने  याचिकाएं दायर की थीं। कुल पांच याचिकाएं इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित थीं। दो याचिकाओं में 1991 में वाराणसी की जिला अदालत में दायर मूल वाद की पोषणीयता को चुनौती  दी गई थी तो तीन याचिकाओं में अदालत के परिसर के सर्वे आदेश को चुनौती दी गई थी।

न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने की प्रकरण की सुनवाई
इस प्रकरण की  न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने भी सुनवाई की थी। पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर ने अगस्त में जस्टिस पाडिया से यह मामला अपने पास ले लिया था। न्यायमूर्ति दिवाकर के नवंबर में सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल सुनवाई कर रहे थे। आठ दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।

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