काल भैरव अष्टमी का पर्व मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा अर्चना करने का विधान है.
हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष मास का बहुत अधिक महत्व बताया गया है. इस महीने में होने वाले पर्वों का विशेष महत्व है, जिन्हें विधि विधान से करने पर पूर्ण फल प्राप्त होता है. धार्मिक दृष्टिकोण से मार्गशीर्ष मास भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है, तो वहीं भगवान शिव की पूजा भी इस महीने में करने से जन्म-जन्मांतर के सभी पाप खत्म हो जाते हैं. इस मास में भोलेनाथ की कृपा से मृत्यु का भय और शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है. मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव को समर्पित है. इस दिन काल भैरव की पूजा करने से जहां मृत्यु का भय खत्म होता है, तो वहीं शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है. काल भैरव अष्टमी की शुरुआत 22 नवंबर की शाम 6:07 बजे पर होगी. उनकी पूजा निशा काल में यानी रात्रि में की जाती है. वहीं अष्टमी तिथि 23 नवंबर की रात 7:56 बजे तक रहेगी.
काल भैरव अष्टमी का पर्व मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किए जाने वाला पर्व है. इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा अर्चना करने का विधान बताया गया है. भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव बहुत शक्तिशाली और सुरक्षा प्रदान करने वाले देवता बताए गए हैं. काल भैरव अष्टमी के दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना विशेष लाभदायक और फलदायक होता है. हरिद्वार का पुराना नाम हरिद्वार यानी भगवान शिव का द्वार है. हरिद्वार में भगवान शिव के पौराणिक सिद्ध पीठ मंदिर हैं. इन मंदिरों में काल भैरव अष्टमी के दिन पूजा अर्चना करने पर विशेष लाभ की प्राप्ति होती है और जो व्यक्ति आपका अनिष्ट करना चाहते हैं, उनसे भी सुरक्षा प्रदान होती है.
काल भैरव के मंत्र का करें जाप
इस दिन काल भैरव के मंत्र ॐ काल भैरवाय नमः का जाप करना विशेष फलदायक होता है. भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव के इस मंत्र का जाप विधि विधान से करना चाहिए. सूर्योदय (23 नवंबर को) के समय स्नान आदि करके भगवान शिव के पौराणिक सिद्ध पीठ मंदिर या अपने घर के देवालय में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और इस मंत्र का जाप करें. ऐसा करने से जीवन में आने वाले सभी दुख, परेशानियां खत्म हो जाएंगी और जो व्यक्ति आपको अनिष्ट करना चाहते हैं, उनसे भी सुरक्षा प्रदान काल भैरव की कृपा से हो जाएगी. इस मंत्र का जाप विधि विधान से करने पर भगवान शिव प्रसन्न होकर सभी समस्याओं से छुटकारा दिलाएंगे.
काल भैरव जयंती 23 नवंबर 2024 को हिन्दू माह मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाएगी। इस दिन को कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। मुख्यतः: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव। मार्गशीर्ष में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव की पूजा का प्रचलन है। इस दौरान काल भैरव के खास मंदिरों के आसपास जत्रा जैसा माहौल हो जाता है। आओ जानते हैं काल भैरव के 16 रहस्य और जानें कि किस तरह मुक्त हो सकते हैं संकटों से।
1. भैरव की उत्पत्ति: पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। इसीलिए वे शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं।
2. काशी के कोतवाल : हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के लिए प्रस्तुत करना। जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है। उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है। कहते हैं कि काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस वस्तु को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे।
3. भैरव के अन्य नाम : पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है। लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव आदि नामों से जाना जाता है।
4. शिव के अवतार : भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है। भैरव को शिव के दस अवतार रुद्रावतार में गिनती की गई है।
5. आदिवासियों के देवता : भैरव कई समाज के ये कुल देवता हैं और खासकर ये आदिवासियों और वनवासियों के देवता हैं। इसलिए भगवान भैरव को पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है, जो कि विधिवत न होकर स्थानीय परम्परा का हिस्सा है।
6. पालिया महाराज : सड़क के किनारे भैरू महाराज के नाम से ज्यादातर जो इटली या स्थान बना रखे हैं दरअसल वे उन मृत आत्माओं के स्थान हैं जिनकी मृत्यु उक्त स्थान पर दुर्घटना या अन्य कारणों से हो गई है। ऐसे किसी स्थान का भगवान भैरव से कोई संबंध नहीं। इन्हें पालिया महाराज कहा जाता है।
7. भैरव के मंदिर : काल भैरव के प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारी मंदिर उज्जैन और काशी में है। काल भैरव का उज्जैन में और बटुक भैरव का लखनऊ में मंदिर है। इसके अलावा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुक भैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्ध है। इसके अलावा शक्तिपीठों और पीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। उज्जैन में भैरवगढ़ में साक्षात भैरवनाथ विराजमान