1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर संकट से बाहर निकालते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने ऐतिहासिक कदम उठाए। पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में, मनमोहन सिंह ने केंद्रीय बजट पेश किया, जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। उस समय भारत गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहा था, जिसमें विदेशी मुद्रा भंडार की कमी और सोवियत संघ के कमजोर होने के कारण देश आर्थिक पतन के कगार पर था।
भारत के आर्थिक संकट से उबारने के लिए किए गए बड़े सुधार
मनमोहन सिंह ने 1991 के केंद्रीय बजट में कई महत्वपूर्ण सुधार पेश किए, जिनका उद्देश्य भारतीय उद्योगों की दक्षता और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना था। उनके अनुसार, विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर भारत के आर्थिक क्षेत्र में सुधार लाना आवश्यक था। यह सुधार प्रक्रिया भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में तकनीकी और प्रतिस्पर्धी बढ़त दिलाने के लिए थी।
बजट के बाद संवाददाता सम्मेलन: सिंह ने किया सुधारों का बचाव
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में लिखा है कि केंद्रीय बजट पेश होने के एक दिन बाद, 25 जुलाई 1991 को मनमोहन सिंह ने बिना किसी पूर्व योजना के संवाददाता सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में उन्होंने अपने बजट के उद्देश्य को स्पष्ट किया और इसे ‘मानवीय बजट’ के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने उर्वरक, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि के प्रस्तावों का बचाव करते हुए, अपने सुधारों की मजबूती से व्याख्या की।
नवीन दिशा की ओर कदम
मनमोहन सिंह का यह बजट न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सफल रहा, बल्कि इसने भारत को एक नई दिशा भी दी। उनकी नीतियों ने विदेशी निवेशकों का विश्वास जीतने और भारत को वैश्विक आर्थिक मंच पर मजबूत स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
इस ऐतिहासिक बजट के बाद, भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार की एक नई लहर आई, जो आने वाली दशकों में भारतीय विकास की कहानी बन गई।