अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं। यहाँ गणेश जी के 12 प्रकार के पार्थिव स्वरूपो की पूजा का फल दिया जा रहा है।
(1) श्री गणेश :- मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!
(2) हेरम्ब :- गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे।
(3) वाक्पति :- भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर। पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।
(4) उच्चिष्ठ गणेश :- लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री। सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे।
(5) कलहप्रिय :- नमक की डली या। नमक के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे।
(6) गोबरगणेश :- गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।
(7) श्वेतार्क श्री गणेश :- सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे।
(8) शत्रुंजय :- कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।
(9) हरिद्रा गणेश :- हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।
(10) सन्तान गणेश :- मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।
(11) धान्यगणेश :- सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।
(12) महागणेश :- लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।
*पार्थिव गणेश प्रतिष्ठा पूजा*
द्विराचम्य प्राणायामं कृत्वा। इष्टकुलस्वाम्यादि देवतानां फल-तांबूलानि प्रदानं कृत्वा। ज्येष्ठां नमस्कृत्य।
ॐ श्रीमन्महागणपतये नम:॥
इष्ट,कुल,ग्राम,वास्तु,गुरू देवताभ्यो नम:॥
सुमुखश्चैकदंतश्च……॥
*पूजा संकल्प*
श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य….शालिवाहनशके मन्मथ नामसंवत्सरे, दक्षिणायने, वर्षा ऋतौ, भाद्रपद मासे, शुक्लपक्षे, चतुर्थ्यां तिथौ (रात्री १०:१९पर्यंत), बृहस्पति वासरे, स्वाती (उत्तररात्री १:३१पर्यंत) दिवस नक्षत्रे, तुला (अहोरात्र) स्थिते वर्तमाने चंद्रे, सिंह स्थिते श्रीसूर्ये (दु.१२:१८नंतर कन्या), सिंह स्थिते श्रीदेवगुरौ, वृश्चिक स्थिते श्रीशनैश्चरौ, शेषेशु ग्रहेषु यथायथं….. शुभपुण्यतिथौ….॥
मम आत्मन: श्रुतिस्मृति-पुराणोक्त फलप्राप्त्यर्थं श्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थं….अमुक …गोत्रोत्पन्नाय अमुक…शर्माणं अहं अस्माकं सकलकुटुंबानां सपरिवाराणां द्विपद-चतुष्पद-सहितानां क्षेम स्थैर्य आयु: आरोग्य ऐश्वर्य अभिवृद्धी अर्थं,समस्त मंगल अवाप्ति अर्थं,समस्त अभ्युदय अर्थं,अभीष्ट कामना सिद्धी अर्थंच प्रतिवार्षिक विहितं {पार्थिवसिद्धिविनायक} देवता प्रीत्यर्थं यथाज्ञानेन यथामिलित उपचार द्रव्यै: पुरुषसूक्त/पुरणोक्तमंत्रै: प्राणप्रतिष्ठापन पूर्वक ध्यानआवाहनादि षोडश उपचार पूजन अहं करिष्ये॥ आदौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं महागणपति स्मरणं, शरीर शुद्ध्यर्थं षडंगन्यासं कलश, शंख, घंटा, दीप पूजनं च करिष्ये॥
*॥प्राणप्रतिष्ठा॥*
अस्य श्री प्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्म-विष्णू-महेश्वरा ऋषय:। ऋग्यजु:सामाथर्वाणि च्छंदासि। पराप्राणशक्तिर्देवता आं बी
जम्। -हीं शक्ति:। क्रों कीलकम्। अस्यां मृन्मयमूर्तौ प्राणप्रतिष्ठापने विनियोग:॥
॥ॐ आं -हीं क्रों॥ अं यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं अ:॥ क्रों -हीं आं हंस: सोहं॥
अस्यां मूर्तौ १ प्राण २ जीव ३ सर्वेंद्रियाणि वाङ् मन:त्वक् चक्षु श्रोत्र जिव्हा घ्राण पाणि पाद पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठंतु स्वाहा॥
ॐ असुनीते…ॐ चत्वारिवाक्…॥
गर्भाधानादि १५ संस्कार सिद्ध्यर्थं १५ प्रणवावृती: करिष्ये॥
रक्तांभोधिस्थ… तच्चक्षुर्देवहितं…॥ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठंतु अस्यै प्राणा:क्षरंतु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
देवस्य आज्येन नेत्रोन्मीलनं कृत्वा।
प्राणशक्त्यै नम:। पंचोपचारै: संपूज्य॥
*१ ध्यानं,आवाहनं*
एकदंतं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं चतुर्भुजं।
पाशांकुशधरं देवं ध्यायेत्सिद्धिविनायकं॥
ॐ सहस्रशीर्षा…
आवाहयामि विघ्नेश सुरराजार्चितेश्वर।
अनाथनाथ सर्वज्ञ पूजार्थं गणनायक॥
*२ आसन*
ॐ पुरुषएवेदं…
नानारक्तसमायुक्तं कार्तस्वरविभूषितम्।
आसनं देवदेवेश प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्॥
*३ पाद्यं*
ॐ एतावानस्य…
पाद्यं गृहाण देवेश सर्वक्षेमसमर्थ भो।
भक्त्या समर्पितं तुभ्यं लोकनाथ नमोस्तु ते॥
*४ अर्घ्य*
ॐ त्रिपादूर्ध्व…
नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर।
नमस्ते जगदाधार अर्घ्यं न: प्रतिगृह्यताम॥
*५ आचमन*
ॐ तस्माद्विराळ…
कर्पूरवासितं वारि मंदाकिन्या:समाहृतम्।
आचम्यतां जगन्नाथ मया दत्तं हि भक्तित:॥
*६ स्नान*
ॐ यत्पुरुषेण…
गंगादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनया हृतम्।
तोयमेतत्सुखस्पर्शं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
॥पंचामृतस्नान,पंचोपचारपूजा,अभि
*मांगलिक स्नान*
ॐ कनिक्रदत्…
तैलेलक्ष्मीर्जलेगंगा यतस्तिष्ठति वै प्रभो।
तन्मांगलिकस्नानार्थं जलतैले समर्पये॥
ॐ तदस्तुमित्रा… सुप्रतिष्ठितमस्तु॥
*७ वस्त्र*
ॐ तंयज्ञंबर्हिषि…
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यताम्।
*८ यज्ञोपवीत*
ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत:…
देवदेव नमस्तेतु त्राहिमां भवसागरात्।
ब्रह्मसूत्रं सोत्तरीयं गृहाण परमेश्वर॥
*९ गंध*
ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतऋच:…
श्रीखंडं चंदनं दिव्यं गंधाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम्॥
अक्षतास्तंडुला:शुभ्रा:कुंकूमेन विराजिता:।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर॥
हरिद्रा स्वर्णवर्णाभा सर्वसौभाग्यदायिनी।
सर्वालंकारमुख्या हि देवि त्वं प्रतिगृह्यताम्॥
हरिद्राचूर्णसंयुक्तं कुंकुमं कामदायकम्।
वस्त्रालंकारणं सर्वं देवि त्वं प्रतिगृह्यताम्॥
उदितारुणसंकाश जपाकुसुमसंनिभम्।
सीमंतभूषणार्थाय सिंगूरं प्रतिगृह्यताम्॥
*परिमलद्रव्य*
ॐ अहिरिवभोगै:…
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते विश्वरूपिणे।
नानापरिमलद्रव्यं गृहाण परमेश्वर॥
*१० फुले,हार,कंठी*
ॐ तस्मादश्वा…
माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मया हृतानि पूजार्थं पुष्पाणि प्रतिगृह्यताम्॥
करवीरैर्जातिकुसुमैश्चंपकैर्बकु
शतपत्रैश्चकल्हारैरर्चयेत् परमेश्वर॥
*॥अथ अंग पूजा॥*
गणेश्वराय नम:-पादौ पूजयामि॥
विघ्नराजाय नम:-जानुनी पू०॥
आखुवाहनाय नम:-ऊरू पू०॥
हेरंबाय नम:-कटिं पू०॥
लंबोदराय नम:-उदरं पू०॥
गौरीसुताय नम:-स्ननौ पू०॥
गणनायकाय नम:- हृदयं पू॥
स्थूलकर्णाय नम:-कंठं पू०॥
स्कंदाग्रजाय नम:-स्कंधौ पू०॥
पाशहस्ताय नम:-हस्तौ पू०॥
गजवक्त्राय नम:-वक्त्रं पू०॥
विघ्नहत्रे नम:-ललाटं पू०॥
सर्वेश्वराय नम:- शिर:पू०॥
गणाधिपाय नम:-सर्वांगं पूजयामि॥
*अथ पत्र पूजा:*
सुमुखायनम:-मालतीपत्रं समर्पयामि॥(मधुमालती)
गणाधिपायनम:-भृंगराजपत्रं॥(माका
उमापुत्रायनम:-बिल्वपत्रं॥(बेल)
गजाननायनम:-श्वेतदूर्वापत्रं॥(
लंबोदरायनम:-बदरीपत्रं॥(बोर)
हरसूनवेनम:-धत्तूरपत्रं॥(धोत्रा
गजकर्णकायनम:-तुलसीपत्रं॥(तुळस)
वक्रतुंडायनम:-शमीपत्रं॥(शमी)
गुहाग्रजायनम:-अपामार्गपत्रं॥(
एकदंतायनम:-बृहतीपत्रं॥(डोरली)
विकटायनम:-करवीरपत्रं॥(कण्हेरी)
कपिलायनम:-अर्कपत्रं॥(मांदार)
गजदंतायनम:-अर्जुनपत्रं॥(अर्जु
विघ्नराजायनम:-विष्णुक्रांतापत्
बटवेनम:-दाडिमपत्रं॥(डाळिंब)
सुराग्रजायनम:-देवदारुपत्रं॥(दे
भालचंद्रायनम:-मरुपत्रं॥(पांढरा मरवा)
हेरंबायनम:-अश्वत्थपत्रं॥(पिं
चतुर्भुजायनम:-जातीपत्रं॥(जाई)
विनायकायनम:-केतकीपत्रं॥(केवडा)
सर्वेश्वरायनम:-अगस्तिपत्रं॥(
*११ धूप,अगरबत्ती*
ॐ यत्पुरुषंव्यदधु:…
वनस्पतिरसोद्भूतो गंधाढ्यो गंधउत्तम:।
आघ्रेय:सर्वदेवानां धूपोयं प्रतिगृह्यताम्॥
*१२ दीप,निरांजन*
ॐ ब्राह्मणोस्य…
आज्यंच वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश सर्वक्षेमसमर्थ भो:॥
*१३ नैवेद्य,प्रसाद*
ॐ चंद्रमामनसो…
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरू।ईप्सितं मे वरं देहि परत्रं च परां गतिम्॥
शर्कराखंडखद्यानी दधिक्षीरघृतानिच।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्॥
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतं।
कर्पूरैलासमायुक्तं तांबूलं प्रतिगृह्यताम्॥
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो:।
अनंतपुण्यफलद मत:शातिं प्रयच्छ मे॥
इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सुफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि॥
फलेन फलितं सर्व त्रैलोक्यं सचराचरम्।
तस्मात्फलप्रदानेन सफलाश्च मनोरथा:॥
*दूर्वायुग्म पूजा*