नई दिल्ली,(नेशनल थॉट्स ) – एकादशी का अपना धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इस शुभ दिन पर, भगवान विष्णु की पूजा बहुत भक्ति और समर्पण के साथ की जाती है। इंदिरा एकादशी पितृ पक्ष में पड़ने वाली एकादशी है, जिसका व्रत करने से आपके लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं। इस एकादशी के दिन श्रद्धा पूर्वक व्रत करने और पूजा करने से आपके पितरों को भी मुक्ति मिलती है।
उनकी आत्मा को शांति मिलती है। प्रत्येक सनातनी को अपने पितरों की मुक्ति हेतु इस एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। इस एकादशी को श्राद्ध एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी व्रत रखा जाने वाला है। आइए जानते हैं इंदिरा एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, और महत्व के बारे में.
इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि आरम्भ: 9 अक्टूबर 2023, दोपहर 12:36 मिनट पर
एकादशी तिथि समाप्त: 10 अक्टूबर 2023, सायं 03:08 मिनट पर
उदया तिथि की मान्यता के आधार पर इंदिरा एकादशी का व्रत 10 अक्टूबर, मंगलवार को रखा जाएगा। व्रत का पारण 11 अक्टूबर को किया जाएगा।
व्रत के पारण का शुभ मुहूर्त: 11 अक्टूबर, प्रातः 06: 19 मिनट से प्रातः 08:38 मिनट तक
एकादशी का व्रत करने के बाद व्रतियों को अनाज, फल और सामर्थ्य के अनुसार धन राशि का दान किसी जरूरतमंद ब्राह्मण को करना चाहिए।
इंदिरा एकादशी का महत्व
इंदिरा एकादशी को लेकर ऐसा माना जाता है कि जो भी इस एकादशी का व्रत करता है उससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और साथ ही उसे पूर्वजों का भरपूर आशीर्वाद भी मिलता है। शास्त्रों में इंदिरा एकादशी को लेकर ऐसा बताया गया है कि यदि आप इंदिरा एकादशी का व्रत करके उसका पुण्य पितरों को दान करते हैं तो आपके वे पूर्वज जिन्हें किन्हीं कारणों से मुक्ति नहीं मिल पाई है। उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि व्रत करने वाले को नरक नहीं जाना पड़ता और पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है।
इंदिरा एकादशी का व्रत कैसे करें
इंदिरा एकादशी का व्रत पितृपक्ष के दौरान पड़ता है, इसलिए व्रतियों को श्राद्ध के भी कुछ नियमों का पालन करने की बात शास्त्रों में कही गई है।
- दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और दशमी तिथि के दिन पवित्रता का पालन करना चाहिए।
- उसके बाद अगले दिन एकादशी तिथि में सुबह जल्दी स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
- श्राद्ध तर्पण करें और भगवान विष्णु की पूजा उपासना करें।
- उनको सात्विक भोजन फल, दूध, मेवा, तुलसी दल इत्यादि का भोग लगाएं।
- उसके उपरांत भगवान के भोग का थोड़ा सा प्रसाद गाय को खिलाएं, फिर ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।
- उसके बाद अगले दिन द्वादशी तिथि में दान-दक्षिणा देने के बाद ही व्रत का पारण करें।